रेबीज – Rabies in Hindi

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रेबीज़ एक न्यूरो इनवेसिव (Neuro-Invasive) वायरल बीमारी है। रेबीज़ का वायरस तंत्रिका तंत्र यानि सेंट्रल नर्वस सिस्टम (Central Nervous System) पर अटैक करता है, जिससे पीड़ित व्यक्ति सामान्य नहीं रह पाता।

क्यों होता है रेबीज़ – Causes of Rabies in Hindi

रेबीज़ (Rabies​) कुत्तों या अन्य पशुओं जैसे भेड़िया, लोमड़ी, सियार, गीदड़ चमगादड़, भेड़, गाय, बन्दर, घोड़ा, बिल्ली के काटने से होने वाला रोग है । पालतू जानवर के थूक के संपर्क में आने पर भी रेबीज़ रोग हो सकता है।

रेबीज़ से होने वाली मौतें – Death Due to Rabies​ in Hindi

विश्व स्वास्थ्य संगठन की तालिका में रेबीज़ (Rabies​) से होने वाली मौतें बारहवें क्रम पर हैं। विश्व में जानवरों के काटने के चालीस लाख मामले प्रतिवर्ष होते हैं। इलाज की अज्ञानता अथवा उपचार के अभाव में साठ हजार मौतें विश्व में प्रतिवर्ष होती हैं। सर्वाधिक मौतें एशिया में होती हैं। पशुओं के काटने के पाँच लाख मामले प्रतिवर्ष दर्ज कराए जाते हैं, जिनमें चार लाख पच्चीस हजार मामले कुत्तों के काटने के होते है। 

रेबीज के लक्षण – Rabies Symptoms in Hindi

  • गले की मांस पेशियों में खिंचाव पैदा हो जाता है
  • पीड़ित व्यक्ति कुत्ते की तरह भौंकने भी लगता है
  • बेचैनी, आंशिक पक्षाघात, भ्रम, अनिद्रा और निगलने में कठिनाई आदि कुछ अन्य लक्षण हैं
  • रेबीज का शिकार बने जानवरों का दिमागी संतुलन बिगड़ने लगता है
  • रेबीज हो जाने पर मरीज पानी से डरने लगता है

रेबीज के कारण – Rabies Causes in Hindi

रेबीज पशुओं के काटने के कारण होता है। पालतू जानवर, कुत्ते, बिल्ली या चमकादड़ के काटने से सबसे अधिक रेबीज़ होता है। 

रेबीज का इलाज – Rabies Treatment in Hindi

रेबीज से बचाव के लिए जरूरी है इसके बारें में जानकारी होना। रेबीज़ (Rabies) अकसर पशुओं के काटने के कारण होता है, साथ ही ऐसे में इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि यह सिर्फ काटने ही नहीं छिलने के कारण भी होता है। रेबीज़ होने पर निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए: 

  • पशुओं के काटने पर काटे गए स्थान को पानी व साबुन से अच्छी तरह धो देना चाहिए।
  • धोने के बाद काटे गए स्थान पर अच्छी तरह से टिंचर या पोवोडीन आयोडिन लगाना चाहिए। ऐसा करने से कुत्ते या अन्य पशुओं की लार में पाए जाने वाले कीटाणु सिरोटाइपवन लायसा वायरस की ग्यालकोप्रोटिन की परतें घुल जाती हैं। इससे रोग की मार एक बड़े हद तक कम हो जाती है, जो रोगी के बचाव में सहायक होती है।
  • इसके तुरंत बाद रोगी को टिटेनस का इंजेक्शन लगवाकर चिकित्सालय में ले जाना चाहिए। यहाँ चिकित्सक की सलाह से काटे गए स्थान पर कार्बोलिक एसिड लगाया जाता है, जिससे अधिकतम कीटाणु नष्ट हो जाते हैं।
  • इसके बाद चिकित्सक की सलाह पर आवश्यकतानुसार इंजेक्शन लगाए जाते हैं, जो तीन या दस दिन की अवधि के होते हैं।
  • तत्पश्चात आवश्यकतानुसार निश्चित दिनों पर बुस्टर डोज भी दिए जाने का प्रावधान है, जो चिकित्सक के विवेक व काटे गए पशु की जीवित या मृत होने की अवस्था पर निर्भर करते हैं।
  • इंजेक्शन लगाने की क्रमबद्धता में लापरवाही घातक सिद्ध हो सकती है।
  • इस रोग का प्रकोप पशु के काटने के तीन दिन के बाद व तीन वर्ष के भीतर कभी भी हो सकता है। 

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