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ब्रॉनकाइटिस की देखभाल – Bronchitis Care tips in Hindi

आपकी देखभाल में आसानी से सांस लेने में आपकी मदद करने वाली दवाएं और सांस के व्यायाम शामिल हैं। यदि आपको लंबे सम्य तक रहने वाला ब्रॉनकाइटिस है तो आपको ऑक्सीजन की जरूरत पड़ सकती है।

आपकी देखभाल में निम्नलिखित भी शामिल हो सकते हैं:

  • सर्दी और फ्लू से बचना।
  • बलगम पतला रखने के लिए अधिक मात्र में पेय पीना।
  • ह्यूमिडिफायर (नमी रक्षक) या वेपराइज़र का प्रयोग करना।
  • आपके फेफड़ों से बलगम निकालने के लिए उचित स्थिति में बैठना और थपकी देना। आपको ऐसा करना सिखाया जाएगा।

आसानी से सांस लेने के लिए –

  • धूम्रपान छोड़ें। लंबे समय तक रहने वाले ब्रॉन्काइटिस से होनेवाली क्षति को धीमा करने का एकमात्र् तरीका धूम्रपान छोड़ना है। छोड़ने के लिए कभी भी बहुत देर नहीं होती।
  • शराब न पियें। यह आपके वायु मार्ग को साफ करने के लिए खांसने और छींकने की इच्छा कम करता है। यह आपके शरीर में द्रवों की कमी करता है जिससे आपके फेफड़ों में बलगम् सख्त हो जाता है तथा उसके निकलने में मुश्किल होती है। 
  • ऐसी चीजों से बचें जो आपके फेफड़ों के लिए हानिकारक है जैसे वायु प्रदूषण, धूल और गैस।
  • अपने शरीर का ऊपरी हिस्सा उठाकर सोएँ। अपना सिर बिस्तर से ऊँचा रखने के लिए फोम के बड़े टुकड़ों का प्रयोग करें।  

अपने डॉक्टर को तुरंत फोन करें, यदि आपको: 

  • ठंड लग रही है या 101 डिग्री F या 38 डिग्री C से ज्यादा बुखार है
  • इनहेलर या सांस उपचार की ज्यादा जरूरत पड़ रही है
  • बलगम अधिक है, रंग बदलता है या निकलने में अधिक मुश्किल हो रही है
  • आपके नाखूनों या उंगलियों की त्वचा या मुह में नए या बढ़ते नीले या भूरे धब्बे पड़ रहे हैं
  • बोलने अथवा सामान्य गतिविधियों में तकलीफ हो रही है
  • सोते हुए अधिक तकियों की जरूरत पड़ रही है या रात में सांस लेने के लिए आप ने कुर्सी में सोना शुरू कर दिया है  
  • सांस नहीं ले सकते 
  • भ्रमित हों, आप को चक्कर आएँ या आप बेहोशी महसूस करें
  • सीने में नया दर्द या अकड़न महसूस करें  

यदि आपके कोई प्रश्न या चिंताएं हों तो अपने डॉक्टर या नर्स से बात करें।

सोरायसिस – Psoriasis in Hindi

सोरायसिस त्वचा की ऊपरी सतह का चर्म रोग है जिससे त्वचा में कोशिकाओं (Cells) की तादाद बढने लगती है और त्वचा के ऊपर मोटी परत जम जाती है। सोरायसिस की बीमारी में सामान्यतः त्वचा पर लाल रंग की सतह उभरकर आती है। यह खोपड़ी (Scalp), हाथ-पाँव अथवा हाथ की हथेलियों, पाँव के तलवों, कोहनी, घुटनों और पीठ पर अधिक होती है। सोरियासिस रोग (Psoriasis) संक्रामक किस्म का रोग नहीं है। रोगी के संपर्क से अन्य लोगों को कोई खतरा नहीं है। 

सोरायसिस के विषय में अधिक जानकारी – Details of Psoriasis in Hindi

यह रोग वैसे तो किसी भी आयु में हो सकता है लेकिन 10 वर्ष से कम आयु में यह रोग बहुत कम होता है। पंद्रह से चालिस की उम्र  में यह रोग ज्यादा होता है। लगभग 1 से 3 प्रतिशत लोग इस बीमारी से पीडित हैं। सोरायसिस एक बार ठीक हो जाने के बाद कुछ समय पश्चात पुनः उभर जाता है और कभी-कभी अधिक उग्रता के साथ प्रकट होता है। ग्रीष्मऋतु की अपेक्षा शीतऋतु में इसका प्रकोप अधिक होता है। यह रोग अनुवांशिक भी हो सकता है। कई लोग इसे चर्मरोग (Charm Rog) या छालरोग भी कहते हैं। 

सोरायसिस के लक्षण – Psoriasis Symptoms in Hindi

  • आंखों में जलन
  • चलने-फिरने में दिक्कत आना
  • जोड़ों में दर्द
  • शरीर में लाल रंग के चकत्ते दिखाई देने लगते हैं

सोरायसिस के कारण – Psoriasis Causes in Hindi

सोरायसिस रोग (A type of Skin Infection) के मुख्य कारण दो ही माने जाते हैं एक आनु्‌वंशिक और दूसरा पर्यावरण। 

सोरायसिस के मुख्य कारण – Main Causes of Psoriasis in Hindi

1. आनुवांशिक: डॉक्टर मानते हैं कि सोरायसिस आनुवांशिक कारणों से भी आ सकता है। 

2. पर्यावरण: लगातार कैमिक्लस और प्रदूषण के संपर्क में रहने कारण भी सोरायसिस हो सकता है। यह बीमारी सर्दियों में अधिक होती है। ज्यादा देर धूप में रहने के कारण भी यह बीमारी हो सकती है। 

सोरायसिस का इलाज – Psoriasis Treatment in Hindi

सोरायसिस  से बचाव और उपचार का पहला केन्द्र है त्वचा की देखभाल करना। सोरायसिस होने पर निम्न उपाय भी फायदेमंद होते हैं: 

  • सोरायसिस के लक्षण दिखने पर विशेषज्ञ चिकित्सक से सलाह लें तथा उसके बताए निर्देशों का पालन करें । 
  • सोरायसिस के रोगियों को तनावमुक्त रहना चाहिए। क्योंकि तनाव सीधे-सीधे सोरायसिस को प्रभावित कर रोग के लक्षणों में वृद्धि करता है। 
  • त्वचा को अधिक खुश्क होने से भी बचाएँ ताकि खुजली न हो। 
  • रोग की तीव्रता न होने पर साधारणतः क्रीम इत्यादि से ही रोग नियंत्रण में रहता है। लेकिन कभी-कभी मुँह से ली जाने वाली एंटीसोरिक और सिमटोमेटिक औषधियों का प्रयोग आवश्यक हो जाता है। आजकल अल्ट्रावायलेट लाइट से उपचार की विधि भी अत्यधिक उपयोगी और लाभदायक हो रही है। 

नोट: आयुर्वेदिक रिसर्च सेंटर के अध्यक्ष डॉ. अंबालकर ने इसी बीमारी को दूर करने का बीड़ा उठाया है। अब तक वह 50 हजार मरीजों का इलाज कर चुके हैं। इस के लिए इस साल उनका नाम लिम्का बुक ऑफ रेकॉर्ड में भी दर्ज किया गया है। दिल्ली में उन्होंने राजौरी गार्डन में आयुर्वेदिक रिसर्च सेंटर (Ayurvedic Treatment of Psoriasis) खोला है।

बालों की देखभाल – Hair Care tips in Hindi

बाल त्वचा का हिस्सा है जो प्रोटीन से बने होते हैं। यह त्वचा के उपरी परत पर निकलते हैं। विज्ञान की भाषा में बाल को प्रोटीन फिलामेंट कहते हैं, जो त्वचा की ऊपरी परत डर्मिस पर वृद्धि करते हैं। बाल कोमल, रूखे और कड़े होते हैं। बाल जहाँ सर्दियों में ठंड से रक्षा करते हैं और गर्मियों में अधिक ताप से सिर की रक्षा करते हैं। किसी कठोर वस्तु से अचानक हुए हमले से भी बाल हमें बचाते हैं।

शरीर के अन्य भागों की अपेक्षा बाल सबसे तेजी से बढ़ते हैं। सिर पर बाल सबसे घने होते हैं। शरीर के बाकी हिस्सों पर छोटे छोटे रोएं निकलते हैं, जिनमें आमतौर पर वृद्धि नहीं होती है। जैसे पलकें, हाथ, पैर और पीठ इत्यादि। सामान्य तौर पर सिर के बाल हर महीने आधा इंच बढ़ते हैं। 

बाल की संरचना – Structure of Hair

हेयर फॉलिकल (Hair Follicle)– यह हिस्सा त्वचा के अंदर रहता है। बाल का सिर्फ यही हिस्सा जीवित हिस्सा है। इसी हिस्से में ग्रोथ होती है। जैसे-जैसे जड़ बढ़ती जाती है बाल की शिराएं(shaft) बढ़ती जाती हैं। बालों के बढ़ने में ब्लड सर्कुलेशन का अहम रोल है। माना जाता है कि ब्लड सर्कुलेशन हेयर फॉलिकल से शुरु होकर बाल की शिराओं तक पहुंचता है।

इसके अतिरिक्त बाल के संरचना अन्य हिस्से भी हैं, जो निम्न हैं-

  • हेयर मेडयूला – Hair Medulla – बीच वाला हिस्सा
  • हेयर कोर्टेक्स – Hair Cortex – बालों की परत
  • हेयर क्यूटिकल – Hair Cuticle – त्वचा के उपर रहने वाला हिस्सा
  • हेयर शाफ्ट – Hair Shaft – त्वचा के उपर रहने वाला हिस्सा

बालों का रंग – Hair Color

आमतौर पर बालों का रंग काला, भूरा या लाल हो सकता है। बालों को कुदरती रंग दो तरह के हेयर पिगमेंट से मिलता है। यह दोनों पिगमेंट मेलानिन के ही प्रकार हैं, जो बालों की जड़ हेयर फॉलिकल में पाए जाते हैं। यूमेलेनिन (Eumelanin) हेयर पिगमेंट के कारण बाल काले और भूरे होते हैं। बालों का लाल होना फिमेलेनिन (pheomelanin) हेयर पिगमेंट के कारण होता है। कभी-कभी किसी के बालों का रंग मटमैला भी होता है। इसकी वजह है हेयर पिगमेंट मेलानिन का कम बनना। बालों का रंग सफेद हो जाना उम्र के बढ़ने, बीमारी और तनाव का संकेत है। 

बालों के प्रकार – Types of Hair in Hindi

1. स्ट्रेट हेयर – Straight Hair 

इस तरह के बाल काफी मुलायम, चमकीली और ऑयली होते हैं। इस तरह को बालों को स्टाइल और नया लुक देना कठिन है। ऐसे बालों को नुकसान भी नहीं पहुंचता है। 

2. वेवी हेयर – Wavy Hair

लहरिया बाल यानि वेवी हेयर ‘S’ शेप का होता है। इस तरह के बाल को कई तरह का स्टाइल और लुक दिया जा सकता है। बालों की चमक और टेक्सचर स्ट्रेट और कर्ली हेयर के बीच का होता है। 

3. कर्ली हेयर – Curly Hair

घुंघराले बाल यानि कर्ली हेयर काफी घने होते हैं। सिर पर इसका आकार ‘S’ या ‘Z’ शेप में दिखता है। घुंघराले बालों को देखभाल की काफी जरुरत होती है। घुंघराले बाल खुद में एक स्टाइल है इसलिए इसमें लुक को लेकर कोई प्रयोग करने की जरुरत नहीं पड़ती है। बस देखभाल करना होता है। 

4. किंकी हेयर – Kinki Hair

यह कर्ली हेयर की तरह ही होते हैं, मगर यह काफी मजबूती से आपस में गुंथे हुए रहते हैं। ऐसे बालों की देखभाल करना थोड़ा कठिन होता है।

बाल की देखभाल के लिए क्या करे – How to care Hair in Hindi

  • बालों की सेहत के लिए उचित खानपान जरूरी है।
  • अंकुरित अनाज प्रोटीन से भरपूर होता है, इसे अपने भोजन में अवश्य सम्मिलित करें। यह आपके पूरे शरीर के साथ-साथ बालों को भी पोषण देगा।
  • जैतून या नारियल तेल की मालिश भी बालों के लिए काफी फायदेमंद होती है।अगर बालों की सही तरह से देखभाल ना की जाए तो ये टूटकर गिरने लगते हैं।

गर्मियों में बालों की देखभाल – Hair care during Summer in Hindi

  • तपती धूप और धूल भरी हवा के कारण बाल रूखे होने के साथ साथ सख्त भी हो जाते हैं।
  • हमारे बालों को सबसे अधिक धूप का सामना करना पड़ता है। ऐसे में सूर्य की पराबैंगनी किरणें बालों को जलाती ही नहीं, बल्कि बालों की प्राकृतिक रक्षात्मक परत को भी प्रभावित करती है। 
  • गर्मियों में अपने बालों पर ड्रायर का इस्तेमाल कम-से-कम करें या इसके इस्तेमाल से बचें। यदि आप अपने बाल पर हेयर ड्रायर प्रयोग करना ही चाहती हैं, तो उसे कोल्ड ब्लो मोड में रखें। 
  • स्विमिंग करते समय बालों को रबर की टोपी से ढंक लें, क्योंकि पानी में मौजूद क्लोरीन बालों को क्षति पहुंचाता है। 

सर्दियों में बालों की देखभाल – Hair care during Winter in Hindi

  • सिर पर वूलन कैप लगाने की जगह रेशमी या साटन का स्कार्फ पहनें। इससे आपके बाल नहीं टूटेंगे। 
  • बालों को कुछ समय तक खुला भी रखें।
  • तापमान को नियंत्रित करने के लिए हीटर के इस्तमाल की वजह से भी बाल रूखे हो सकते हैं। इस रूखेपन को दूर करने के लिए एक्स्ट्रा डीप कंडिशनर का इस्तेमाल करें। 
  • ऐसे प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करें जो बालों में नमी के स्तर को बनाए रखें।

बाल की देखभाल के लिए टिप्स – Ways to care for your Hair in Hindi

  • बालों की तेल से मालिश करें इसके लिए नारियल तेल, बादाम तेल, अरंडी का तेल, जैतून का तेल या भृंगराज तेल इत्यादि का प्रयोग करें।
  • बालों को हर्ब्स से धोएं, जैसे- मेंहदी, नीम और ग्रीन टी।
  • बालों की जड़ (Scalp) की मसाज रोजाना पांच मिनट तक करें। इससे हेयर फॉलिकल में ब्लड सर्कुलेशन बढ़ेगा और बालों की जड़ मजबूत होगी
  • बालों की जड़ों को पोषण देने के लिए अच्छी डाइट लें। अपनी डाइट में ऐसे फूड को शामिल करें जिसमें विटामिन ए, बी, सी, ई के साथ-साथ आइरन, जिंक, मैग्नेशियम और सेलेनियम जैसे तत्वों की अच्छी मात्रा मौजूद हो। 
  • बालों में अंडे का मास्क लगाएं। अंडे में प्रोटीन के साथ वो सारे जरुरी तत्व जैसे- आइरन, सल्फर, फॉस्फोरस, जिंक और सेलेनियम पाए जाते हैं जिससे बालों को पोषण मिलता है। 
  • बालों को शैंपू से धोएं, मगर रोजाना नहीं। क्योंकि बालों को ज्यादा धोने से उनके ड्राई होने का खतरा रहता है। बाल धोने के लिए अच्छी क्वालिटी का शैंपू इस्तेमाल करें। हर्बल शैंपू हो तो बेहतर है। 
  • वैसे शैंपू का इस्तेमाल करें जिसमें सल्फेट नहीं हो। सल्फेट एक केमिकल है जो सिर्फ ज्यादा झाग करता है। यह बालों को नुकसान पहुंचाता है। 
  • शैंपू हमेशा वो इस्तेमाल करें जो आपके बालों के टेक्सचर के अनुकूल हो। 
  • कर्ली हेयर वालों को सॉफ्ट शैंपू से बाल धोना चाहिए 
  • स्ट्रेट और ऑयली हेयर वाले को हमेशा रेगुलर यानि जेंटल शैंपू का इस्तेमाल करना चाहिए। ड्राई हेयर वालों को ऐसे शैंपू से बाल धोना चाहिए जिसमें ग्लिसरीन हो। 
  • हफ्ते में एक दिन बालों की डीप कंडीशनिंग करनी चाहिए। इससे बाल नर्म और मुलायम होते हैं। 
  • कभी भी भीगे बालों के साथ नहीं सोना चाहिए। सोने से पहले बालों को पूरी तरह सुखा लें। बालों का ज्यादा गीला रहना बालों की जड़ को कमजोर करता है। 
  • बालों को कभी भी कड़े तौलिए से न सुखाएं या रगड़ें, इससे बालों के टूटने का खतरा रहता है। 
  • शैंपू, कंडीशनिंग या मास्क लगाने के बाद हमेशा बालों को ठंडे पानी से ही धोएं। बाल सुखाने के लिए ब्लोअर का अधिक इस्तेमाल नहीं करें।

प्राकृतिक तरीके से हाई ब्लड प्रेशर को कैसे नियंत्रित करें – Tips to Control High Blood Pressure Naturally in Hindi

प्राकृतिक तरीके से हाई ब्लड प्रेशर को कैसे नियंत्रित करें – Tips to Control High Blood Pressure Naturally

उच्च रक्तचाप के रोगी जीवन शैली में पोषण का समावेश करके अप्रत्याश्चित लाभ ले सकते हैं। फल और सब्जियों की मात्रा बढ़ाकर वह न केवल अपने रक्त चाप को सामान्य कर सकते हैं बल्कि अपने वजन को भी कम कर सकते हैं जो रक्त चाप को समान्य रखने में और मदद करेगा।

प्रोसेस्ड बनाम अनप्रोसेस्ड – Avoid Processed Foods

उच्च रक्तचाप के रोगी को प्रोसेस्ड चीज़ो के बजाय अनप्रोसेस्ड और अनरिफाईन्ड, ताजा तथा पूर्ण चीज़ो का सेवन करना चाहिए।

कम नमक और हाई पोटासियम – Low sodium-High Potassium

वाला आहार लेना चाहिए। अधिकतर लोग यह जानते हैं कि नमक की मात्रा कम करने से रक्तचाप को कम करने में मदद मिलती है लेकिन यह बात कम लोग जानते हैं कि इसके साथ अगर पोटासियम (Potassium) की मात्रा को आहार में बढ़ा दिया जाए तो ज्यादा लाभ मिलता है। डेयरी उत्पादों, तली हुई चीज़ें, जंक फूड, कॉफ़ी इत्यादि का सेवन कम से कम करना चाहिए। प्रतिदिन कम से कम 8 से 10 गिलास पानी अवश्य पिएं।

हाई ब्लड प्रेशर से तुरंत राहत के लिए जड़ी बूटियां – Herbs for high blood pressure in Hindi

जड़ी बूटियों का सबसे बड़ा लाभ यह है कि अगर उनका उपयोग सही मात्रा में किया जाए तो कोई नुकसान नहीं होता है। कुछ जड़ी बूटियाँ उच्च रक्तचाप के इलाज में इस्तेमाल की जाती है लेकिन उनका उपयोग एक चिकित्सक की निगरानी में ही करना चाहिए क्योंकि कभी-कभी इनकी अधिक मात्रा लेने से कुछ परेशानी हो सकती हैं।

कुछ जड़ी बूटियाँ जो उच्च रक्तचाप को कम करने में मदद करती हैं:

  • पत्थरचूर – Patharchur – उच्च रक्तचाप को कम करती है तथा ह्रदय की कार्यशीलता बढ़ाती है।

  • नागफनी – Hawthorne – धमनियों की सिकुड़न को कम करती है (Dilates), जो रक्तचाप को कम करने में मदद करता है।
  • अमर बेल -Viscum album- रक्तचाप को कम करने में बहुत मदद करती है।
  • रउवोल्फिआ – Rauwolfia – रउवोल्फिआ जड़ी बूटियो में सबसे ज्यादा असरकारक होती है। इसकी एक बहुत छोटी खुराक ही काफी असरकारक होती है।
  • लहसुन- मंतज एंगीओटेंसीन 2 एक प्रकार का प्रोटीन होता है जो हमारी रक्‍त वाहिकाओं को कंट्रोल करता है, लहसुन में एलीसिन होता है जो एंगीओटेंसीन की हर प्रतिक्रिया को रोक देता है और इससे ब्‍लड़ प्रेशर कंट्रोल में आ जाता है। लहसुन में पॉलीसल्‍फाइड भी होता है जो हाइड्रोजन सल्‍फाइड में बदल जाता है जिसे रेड ब्लड सेल्‍स बदलती है। हाइड्रोजन सल्‍फाइड, हमारी ब्लड वेसेल्‍स को फैला देती है और ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करती है।

कब्ज के लिए योग – Yoga for Constipation in Hindi

यदि मल सख्त हो और रोज न आये तो उसे कब्ज़ कहेंगे। बहुत अधिक समय से इस समस्या के होने के कारण इसको पुराना कब्ज़ कहते हैं। इसमें मल बहुत सख्त हो जाता है तथा मल को बाहर करने के लिये जोर लगाना पड़ता है। मल को नर्म करने के लिये आवश्यक है कि उस में पानी की मात्रा अधिक हो। विभिन्न प्रकार के आसनों को नियमित रूप से करने पर हर प्रकार के कब्ज़ से राहत मिलती है। 

कब्ज़ दूर करने के लिये योगासन – Yogasan for Constipation in Hindi

कपालभाति – Kapalbhati :

  • हवा जोर लगाकर बाहर फेँके (पेट अन्दर जायेगा). दिल की बिमारी या कमजोर लोग धीर धीरे करे
  • इस प्रक्रिया तो ३० से ५० बार करें।  
  • इससे पेट की तमाम बिमारिया खासतौर पर कब्ज में विशेष लाभ मिलेगा।  

अग्निसार क्रिया – Agnisar Kriya :

  • ठुडी को गले से लगा दे, पेट के नीचे बन्द लगा दे
  • साँस बाहर छोडकर पेट को एक लहर की तरह रीढ की हड्डी के पास तक ले ज़ाये
  • इसे २-५ बार करे

पवनमुक्तासन – Pawanmuktasana : 

  • पीठ के बल जमीन पर लेट कर, बाएं पैर को घुटने से मोड़ें।
  • इस घुटने को दोनों हाथों से पकड़ कर छाती की ओर लाएं, सिर को जमीन से ऊपर उठा कर घुटने को नाक से छुएं।
  • इस स्थिति में सामान्य रूप से रुक कर वापस पूर्व स्थिति में आ जाएं।
  • यही क्रिया दूसरे पैर से भी करें। इसके बाद इस क्रिया को दोनों पैरों से एक साथ करें।
  • यह पवनमुक्तासन का  एक पूर्ण चक्र है।
  • इसी प्रकार तीन-चार चक्र करें, इसके बाद इसे बढ़ा कर 10 चक्रों तक ले जाएं।    

धनुरासन – Dhanurasana :

  • धनुरासन करने के लिए चटाई पर पेट के बल लेट जाएं।
  • ठुड्डी ज़मीन पर टिकाएँ। पैरों को घुटनों से मोड़ें कर कर दोनों हाथों से पैरों केपंजो को पकड़ें।
  • फिर सांस भर लीजिए और बाजू सीधे रखते हुए सिर, कंधे, छाती को जमीन से ऊपर उठाएं।
  • इस स्थिति में सांस सामान्य रखें और चार-पाँच सेकेंड के बाद सांस छोड़ते हुए धीरे-धीरे पहले छाती, कंधे और ठुड्डी को जमीन की ओर लाएं।
  • पंजों को छोड़ दें और कुछ देर विश्राम करें। इस प्रक्रिया को कम से कम तीन बार दोहराएं।

भुजंगासन – Bhujangasana :

  • पेट के बल लेट कर, दोनों पैरों, एड़ियों और पंजों को आपस में मिलते हुए  पूरी तरह जमीन के साथ चिपका लीजिए।
  • शरीर को नाभि से लेकर पैरों की उँगलियों तक के भाग को जमीन से लगाइए।
  • अब हाथों को कंधो के समांतर जमीन पर रखिए।
  • दोनों हाथ कंधे के आगे पीछे नहीं होने चाहिएं।
  • हाथों के बल नाभि के ऊपरी भाग को ऊपर की ओर जितना सम्भव हो उतना उठाइये  ।
  • हर्निया के रोगी को यह आसन नहीं करना चाहिए। गर्भवती स्त्रियों को यह आसन नहीं करना चाहिए।

    नोट – कोई भी आसन तीन से चार बार कर सकते हैं। योग अपनी शक्ति और सार्मथ्य के हिसाब से ही करना चाहिए, जबरन नहीं। दो-तीन दिन में एक बार गुनगुने पानी का एनीमा अवश्य लें।

हीमोग्लोबिन के बारे में – About Haemoglobin in Hindi

हीमोग्लोबिन अस्थि मज्जा (Bone Marrow) में बनने वाला रक्त कोशिका का लोहयुक्त एवं ऑक्सीजन वाहक वर्णक होता है जिसके कारण रक्त का रंग लाल होता है।यह प्रोटीन का एक अत्यधिक जटिल (Complex) रूप है, इसमे 96% भाग ग्लोबिन तथा 4% भाग हिम होता है।

हीमोग्लोबिन के कार्य – Function of Haemoglobin in Hindi

इसका मुख्य कार्य ऑक्सीजन को फेफड़ो से ऊतकों तथा ऊतकों से कार्बन डाइऑक्सइड को फेफड़ो में पहुँचाना है। इस क्रिया में हीमोग्लोबिन का हिम भाग फेफड़ो की ऑक्सीजन से संयोजित होता है जिससे ऑक्सीहीमोग्लोबिन बनता है, जो अस्थायी योगिक है।

ऑक्सी हैमोग्लोबिन के ऊतकों में पहुचने पर जहा पर ऑक्सीजन का तनाव कम होता है और कार्बन डाइऑक्सीसाइड का बढ़ा होता है, इससे ओक्सिजन मुक्त हो जाती है तथा कार्बन डाइओक्साइड संयोजित हो जाती है जो परिसंचारित रक्त के साथ फेफड़ो में पहुँच कर हीमोग्लोबिन से अलग हो जाती है और निःश्वसन में फेफड़ो से बाहर निकल जाती है। हीमोग्लोबिन के द्धारा ऑक्सीजन प्रकार के लेंन-देन का क्रम जीवित अवस्था में निरंतर चलता रहता है।

हीमोग्लोबिन की देखभाल के लिए क्या करे – How to care Haemoglobin in Hindi

हीमोग्लोबिन का सामान्य मान – Normal Value of Haemoglobin

  • पुरुष : 14 से 17 ग्राम/100 मिली. रक्त  
  • स्त्री : 13 से 15 ग्राम/100 मिली. रक्त 
  • शिशु : 14 से 20 ग्राम/100 मिली. रक्त  

हीमोग्लोबिन स्तर को बढ़ाने के लिए टिप्स – Tips to Increase Value of Haemoglobin

  • दिन में एक सेब अवश्य खाएं, एक सेब खाकर सामान्य हीमोग्लोबिन स्तर को बनाए रख सकते हैं। 
  • लीची स्वास्थ्यवर्ध्क गुणों की खान है। रक्त कोशिकाओं के निर्माण और पाचन-प्रक्रिया में सहायक लीची में बीटा कैरोटीन, राइबोफ्लेबिन, नियासिन और फोलेट जैसे विटामिन बी काफी मात्रा में पाया जाता है। यह विटामिन लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण के लिए जरूरी है।
  • हीमोग्लोबिन का स्तर बढ़ाने के लिए चुकंदर सबसे अच्छा खाद्य प्रदार्थ है। इसमें आयरन, फोलिक एसिड, फाइबर, और पोटेशियम सही मात्रा में होता है। ये शरीर की लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि करता है।
  • अनार में आयरनऔर कैल्शियम के साथ-साथ प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और फाइबर होते हैं जिससे हीमोग्लोबिन बढ़ाने में मदद मिलती है। 
  • हीमोग्लोबिन स्तर को बढ़ाने के लिए  गुड़ एक बेहद उत्तम तरीका है। गुड़ में आयरन फोलेट और कई विटामिन बी शामिल हैं जो लाल रक्त कोशिका के उत्पादन को बढ़ाने में मददगार साबित होते हैं।
  • नियमित व्यायाम करें। जब हम व्यायाम करते हैं तब हमारा शरीर खुद-ब-खुद हीमोग्लोबिन पैदा करता है
  • कॉफ़ी, चाय, कोला, वाइन, बियर, ओवर-द-काउंटर एंटाएसिड, कैल्शियम युक्त खाद्य पदार्थ जैसे डेयरी उत्पाद या कैल्शियम सप्लीमेंट्स शरीर में आयरन सोखने की क्षमता को कम करते हैं। अतः यदि आपका हीमोग्लोबिन स्तर कम है तो आप इन खाद्य प्रदार्थों के सेवन से बचें।
  • हीमोग्लोबिन का कम स्तर, विटामिन सी की कमी के कारण भी हो सकता है क्योंकि विटामिन सी की कमी के कारण शरीर सही मात्रा में आयरन को सोख नहीं पाता है। इसलिए विटामिन सी से युक्त खाद्य प्रदार्थ लेकर हीमोग्लोबिन का स्तर सही कर सकते हैं।  

हीमोग्लोबिन की देखभाल के लिए टिप्स – Ways to care for your Haemoglobin in Hindi

  • भोजन में पोषक तत्त्वों की कमी के कारण हीमोग्लोबिन का स्तर तेजी से घटता है। इसे बढ़ाने के लिए जरूर है कि दैनिक अहार में आयरन तथा प्रोटीन युक्त खाने का इस्तेमाल करें।
  • नियमित रूप से खाने में अंडा, दाल, जूस आदि के सेवन से खून की कमी की स्थिति से बाहर आ सकते हैं।
  • शराब और धूम्रपान जैसी बुरी आदतों से दूरी भी हीमोग्लोबिन के स्तर को बनाए रखने में सहायक सिद्ध होता है।
  • प्रतिदिन सुबह के समय की स्वच्छ हवा में किया गया व्यायाम भी हमें स्वस्थ रखने में सहायता करता है।

थायराइड में देखभाल – Thyroid tips in Hindi

थाइरॉयड ग्रंथि (Thyroid Gland) दो खण्डो से बनी एक नलिकाविहीन ग्रंथि होती है जिसमे प्रत्येक खण्ड श्वास-प्रणाली (Respiratory System) के ऊपरी भाग के दोनों ओर स्थित होता है तथा संकीर्णपथ  इस्थमस द्वारा दोनों खण्ड आपस में जुड़े होते है। आइएं जानें इस ग्रंथि के बारें में अधिक बातें:

  • थाइरॉयड ग्रंथि द्वारा थाइरॉक्सिन एव टाआयोडोथाइरोनिन दो हॉर्मोन उत्पन्न होते है।
  • ये हार्मोन चयापचय को तथा ऊतकों की विशेष रूप से तंत्रिका तंत्र के ऊतकों की वृद्धि एव विकास को नियंत्रित करते है। 
  • थाइरॉयड ग्रंथि अत्यधिक वाहिकीय ग्रंथि होती है। जिसका वजन लगभग 25 ग्राम होता है। 
  • यह ग्रंथि चारो ओर से एक तंतुमय कैप्सूल से घिरी होती है। यह पुतिकाओ से बनी होती है जो चारो ओर घनाकार उपकला-कोशिकाओ से घिरी होती है जो अनेको गोलाकार पुटक या फ्रोलिकल्स बनती है, जिनमे एक गाढा, चिपचिपा प्रोटीन पदार्थ कोलॉयड भरा होता है जिसमे थाइरॉयड हार्मोन्स संचित रहते है। 
  • यह कोलॉयड फॉलिक्युलर कोशिकाओ द्वारा पैदा किया जाता है। 
  • फॉलिक्युलर कोशिकाओ के बीच पैराफालिक्युलर कोशिकाएँ मौजूद होती हैं इनकी सहायता से कैल्सिटोनिन नामक हार्मोन का निर्माण एव स्त्रवण करती है, जो रक्त में कैल्सियम सांद्रता को कम कर देता है। कैल्सिटोनिन हार्मोन कैल्सियम के चयापचय के लिए भी आवश्यक होता है। 
  • थाइरॉक्सिन तथा तईआयडोथाइरोनिन इन दोनों हार्मोन्स को बनने के लिए आयोडीन की आवश्यता होती है। जो भोजन एव जल के साथ उपलब्ध होती है और छोटी आंत से अवशोषित होकर रक्त में मिल जाती है।  इसका अधिकांश भाग थाइरॉयड ग्रंथि द्वारा ग्रहण कर लिया जाता है जिससे थाइरॉयड हार्मोन्स बनने है। 
  • T 3 का सीरम में सामान्य मान 0.7-2.0 ng/ml रक्त होता है। 
  • थाइरॉयड हार्मोन्स की उत्पति एव स्त्रवण होने की सम्पूर्ण प्रक्रिया अग्र पिट्यूटरी द्वारा स्त्रावित थाइरॉयड प्रेरक हार्मोन द्वारा नियंत्रित होती है। 
  • जल या भोजन में आयोडीन की कमी हो जाने से थाइरॉयड हार्मोन्स उपयुक्त मात्रा में नही बनते जिससे TSH का स्त्रवण बढ़ जाता है जिससे गलगण्ड या घेघ बन जाता है, जिससे थाइरॉयड ग्रंथि बढ़ जाती है। गर्दन सूजी हुई दिखयी देती है। 
  • थाइरॉयड ग्रंथि की अत्यधिक बढ़ी हुई क्रियाशीलता से नेत्रोत्सेधी गलगण्ड हो जाता है जिसमें नेत्रगोलक बाहर को निकल आते है तथा थाइरॉयड ग्रंथि बढ़ जाती है।
  • इसके विपरीत थाइरॉयड ग्रंथि की क्रियाशीलता में कमी हो जाने के परिणामस्वरूप अवटु अल्पक्रियता या हाइपोथायरॉइडिज्म नमक स्थिति पैदा हो जाती है इसमें बच्चो में जन्म से ही अवतुवमन या क्रेटिनिज्म रोग हो जाता है। 
  • इस रोग में हड्डियों एव कोमल ऊतकों का अपविकास तथा आधारी चयापचय में कमी होने के साथ शारीरिक एव मानसिक विकास रुक जाता है। 
  • व्यस्को में अल्पस्त्रवण से मिक्सिडिमा रोग हो जाता है जिसमे त्वचा शुष्क, खरदरी एव मोती हो जाती है जिस पर से बल झड़ जाते है, चेहरा एव हाथ सूज जाते है, जिव्ह बड़ी हो जाती है,आवाज धीमी हो जाती है, रक्ताल्पता हो जाती है, ठण्ड जल्दी लगने लगती है, भवहीनता हो जाती है तथा सुस्ती छाई रहती है एव चयापचयी दर कम हो जाती है, स्त्रियों में मासिक धर्म बिलकुल नही होता अथवा अत्यधिक होता है।

थाइरॉयड ग्रंथि की देखभाल के लिए क्या करे – How to care Thyroid Gland in Hindi

  • थायराइड एक संवेदनशील ग्रंथि है और इसका सीधा संबंध आपकी तनाव प्रतिक्रिया से है। इसलिए तनाव से बचें ।  
  • प्रोटीन का ज्यादा सेवन करें प्रोटीन आपके शरीर के सभी अंगों में थायराइड हार्मोन संचार करता है । 
  • आयोडीनयुक्त भोजन करना चाहिए। आयो‍डीन थाइराइड ग्रंथि के दुष्प्रभाव को कम करता है। 
  • साबुत अनाज खाने से शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढती है। 
  • मछली में आयोडीन ज्‍यादा मात्रा में पाया जाता है। ट्यूना, सामन, मैकेरल, सार्डिन, हलिबेट, हेरिंग और फ़्लाउंडर, ओमेगा -3 फैटी एसिड की शीर्ष आहार स्रोत हैं।
  • दूध और दही में पर्याप्त मात्रा में विटामिन, मिनरल्स, कैल्शियम और अन्य पोषक तत्व पाए जाते हैं। दही खाने से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढती है। 
  • फल और सब्जियां – हरी और पत्तेदार सब्जियां थायरायड ग्रंथि की क्रियाओं के लिए अच्छी होती हैं। हाइपरथाइराइजिड्म के कारण हड्डियाँ कमजोर हो जाती हैं इसलिए हरी और पत्तेदार सब्जियों का सेवन करना चाहिए जिसमें विटामिन-डी और कैल्शियम होता है जो हड्डियों को मजबूत बनाता है।
  • सादा सुपाच्य भोजन,मट्ठा,नारियल का पानी,को अपने भोजन में शामिल करें

परहेज :

  • मिर्च-मसाला,तेल,अधिक नमक, चीनी, खटाई, चावल, मैदा, चाय, काफी, नशीली वस्तुओं, तली-भुनी चीजों, रबड़ी,मलाई, मांस, अंडा  जैसे खाद्यों से परहेज रखें

उज्जायी प्राणायाम :

  • पद्मासन या सुखासन में बैठकर आँखें बंद कर लें अपनी जिह्वा को तालू से सटा दें अब कंठ से श्वास को इस प्रकार खींचे कि गले से ध्वनि व् कम्पन उत्पन्न होने लगे इस प्राणायाम को दस से बढाकर बीस बार तक प्रतिदिन करें

थाइरॉयड ग्रंथि की देखभाल के लिए टिप्स – Ways to care for your Thyroid Gland in Hindi

  • थाइराइड को स्वस्थ रखने के लिए व्यक्ति को नियमित रूप से हलासन (व्यायाम) करना चाहिए।
  • थाइराइड प्रक्रिया को सामान्य रखने के लिए अपने भोजन में नमक की मात्रा का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
  • थाइराइड प्रक्रिया को मजबूत रखने के लिए अपने दैनिक आहार में हरी मिर्च, पनीर और टमाटर को जरूर शामिल करें। इसके अलावा हरी सब्जियों और समुद्री मछलियों का सेवन भी थाइराइड के लिए फायदेमंद साबित होता है।
  • नियमित रूप से व्यायाम करने से भी थाइराइड प्रक्रिया को मजबूती मिलती है।
  • थाइराइड की बीमारी से बचने में अखरोट भी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके सेवन से गले में आने वाली सूजन से राहत मिलती है।

कब्ज की होम्योपैथिक दवा और इलाज – Homeopathic medicine and treatment for Constipation in Hindi

कब्ज, पाचन तंत्र की उस स्थिति को कहते हैं जिसमें कोई व्यक्ति (या जानवर) का मल बहुत कड़ा हो जाता है तथा मलत्याग में कठिनाई होती है। कब्ज अमाशय की स्वाभाविक परिवर्तन की वह अवस्था है, जिसमें मल निष्कासन की मात्रा कम हो जाती है, मल कड़ा हो जाता है, उसकी आवृति घट जाती है या मल निष्कासन के समय अत्यधिक बल का प्रयोग करना पड़ता है। सामान्य आवृति और अमाशय की गति व्यक्ति विशेष पर निर्भर करती है। एक सप्ताह में 3 से 12 बार मल निष्कासन की प्रक्रिया सामान्य मानी जाती है।

कब्ज का होमियोपैथिक इलाज :

  • होमियोपैथी  चिकित्सा की सबसे लोकप्रिय समग्र प्रणालियों (Holistic Pathy) में से एक है
  • होमियोपैथी (Homoeopathy)में इलाज के लिए दवाओं का चयन व्यक्तिगत लक्षणों पर आधारित होता है।
  • यही एक तरीका है जिसके माधयम से रोगी के सब विकारों को दूर कर सम्पूर्ण स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
  • होमियोपैथी का उद्देश्य कब्ज (Constipation) करने वाले कारणों का सर्वमूल नाश करना है न की केवल कब्ज (Constipation) का ।
  • जहां तक चिकित्सा सम्बन्धी उपाय की बात है तो होमियोपैथी में कब्ज (Constipation) के लिए अनेक होमियोपैथिक दवाइयां (Homeopathic Drugs) उपलब्ध हैं।
  • व्यतिगत इलाज़ के लिए एक योग्य होम्योपैथिक (Qualified Homeopathic) डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।

निम्नलिखित होम्योपैथिक दवाइयां कब्ज़ (Constipation) के उपचार में काफी लाभकारी होती है:

  • गरिकस ( Agaricus)
  • ऐथूसा (Aethusa)
  • अलुमन (Alumen)
  • एलुमिना (Alumina) 
  • ब्रयोनिआ अलबा (Bryonia alba) 
  • एलो सोकोट्रिना (Aloe socotrina)
  • ऐन्टिम क्रूड (Antim crude)
  • असफ़ोइतिदा (Asafoitida) 
  • बाप्टेसिआ (Baptesia) 
  • कालकरिअ कार्ब (Calcaria carb) 
  • चाइना (China) 
  • कोलिन्सोनिआ (Collinsonia)  
  • ग्रैफाइटिस (Graphites)

कब्ज का आयुर्वेदिक उपचार – Ayurvedic treatment for Constipation in Hindi

आयुर्वेद के अनुसार:

  • कब्ज़ शरीर में वात के बढ़ने से होती है। 
  • आयुर्वेद के अनुसार वात प्रकृति वाले व्यक्तियों को कब्ज़ होने की संभावना ज्यादा रहती है। 
  • आयुर्वेद के अनुसार कब्ज़ का मूलभूत कारण हमारा भोजन है। अगर भोजन में फाइबर और तरल पर्दार्थों की कमी होगी तो हमारे मल को शरीर से बाहर निकलने में परेशानी होगी । 

आयुर्वेदिक उपचार – Ayurvedic Treatment

कड़ा कब्ज़ – Hard Stool :

  • हल्के गर्म तिल के तेल से अनिमा (Enema) लेने पर कड़े कब्ज़ में तुरन्त राहत मिलती है।
  • तिल के तेल से पेट पर मालिश करने से भी कब्ज़ में आराम मिलता है।
  • ग्लिसरीन से पेट पर मालिश करने से भी कब्ज़ में आराम मिलता है।

पुरानी कब्ज़ – Chronic Constipation :

  • त्रिफला (Triphala) के सेवन से पुरानी कब्ज़ में बहुत आराम मिलता है।
  • रात को सोते वक्त 5 ग्राम (एक चम्मच भर) त्रिफला चुर्ण हल्के गर्म दूध अथवा गर्म पानी के साथ लेने से कब्ज़ दूर होती है।
  • त्रिफला व ईसबगोल की भूसी दो चम्मच मिलाकर शाम को गुनगुने पानी से लें इससे कब्ज़ दूर होती है।

वात युक्त शरीर – Vata Type Body:

  • वात युक्त शरीर वालों के लिए हल्के गर्म तिल के तेल से अनिमा लेने पर कब्ज़ में तुरन्त राहत मिलती है।
  • रात को सोते समय दूध के साथ अलसी के बीज़ Flaxseeed लेना लाभकर होता है। 

पित्त युक्त शरीर – Pitta Type Body :

  • पित्त युक्त शरीर वालों में कब्ज़ का मूल कारण शरीर में पित्त की अधिकता के कारण इन्फ्लेमेशन का होना है।
  • पित्त युक्त शरीर में पेट और छोटी आँत, दो ऐसी जगह है जहाँ पित्त दोष का असर सबसे ज्यादा होता है। 
  • नीम पित्त दोष के लिए एक बहुत उपयुक्त जड़ी बूटी है। इसके उपयोग से पित्त दोष में आराम मिलता है और छोटी आँत की इन्फ्लेमेशन कम होती है जिस कारण वहाँ से मल को आगे बढ़ने में आसानी होती है।

कफ युक्त शरीर – Kapha Type Body :

  • कफ युक्त शरीर वालों के लिए शरीर में कफ को नियंत्रित करने वाले आहार पर जोर दिया जाता है।
  • बासमती चावल, कच्ची सब्जियाँ और फ़ल जैसे की सेब, केला, अंगूर का सेवन लाभदायक होता है।
  • कफ युक्त शरीर वालों को कभी भी जुलाब प्रेरक प्रदार्थ नही लेना चाहिये।
  • अपने भोजन में उन पर्दार्थो का समावेश करें जिनमे फाइबर अधिक होता है।