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ह्रदय की देखभाल – Heart Care tips in Hindi

ह्रदय एक पेशीय (muscular) अंग है जो छाती के मध्य में, बाईं ओर स्थित होता है। औसतन मानव ह्रदय एक मिनट में 72 बार एवं एक दिन में लगभग 1 लाख बार धड़कता है।

ह्रदय से जुड़े तथ्य – Facts About Heart in Hindi

  • इसका भार औसतन महिलाओं में 250 से 300 ग्राम और पुरुषों में 300 से 350 ग्राम होता है।
  • यह हर धड़कन के साथ शरीर में रक्त को पम्प करता है।
  • हृदय को पोषण एवं ऑक्सीजन, रक्त के ज़रिए मिलता है जो कोरोनरी आर्टरीज़ द्वारा प्रदान किया जाता है।
  • हृदय दो भागों में विभाजित होता है, दायां एवं बायां। हृदय के दाहिने एवं बाएं, प्रत्येक ओर दो चैम्बर (एट्रिअम एवं वेंट्रिकल नाम के) होते हैं। कुल मिलाकर हृदय में चार चैम्बर होते हैं।
  • हृदय का दाहिना भाग शरीर से दूषित रक्त प्राप्त करता है एवं उसे फेफडों में पम्प करता है।
  • रक्त फेफडों में शोधित होकर ह्रदय के बाएं भाग में वापस लौटता है जहां से वह शरीर में वापस पम्प कर दिया जाता है।
  • चार वॉल्व, दो बाईं ओर (मिट्रल एवं एओर्टिक) एवं दो हृदय की दाईं ओर (पल्मोनरी एवं ट्राइक्यूस्पिड) रक्त के बहाव को निर्देशित करने के लिए एक-दिशा के द्वार की तरह कार्य करते हैं।

हृदय की देखभाल के लिए क्या करे – How to care Heart in Hindi

आज के तनावग्रस्त जीवन में हृदयरोग का खतरा दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। हृदय को स्वस्थ रखने के लिए व्यायाम करना जितना ज़रूरी होता है उतना ही स्वास्थ्यवर्द्धक खाना भी ज़रूरी होता है। 

ह्रदय को स्वस्थ रखने के कुछ उपाय – Care Tips for Healthy Heart in Hindi

  • सुबह नाश्ता अवश्य करें और समय पर लंच करें। 
  • नमक का उपयोग कम से कम करें। 
  • कम वसा वाले आहार लें।
  • ताजी सब्जियां और फल लें। 
  • जितने भी रंगीन फल होते हैं वे स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होते हैं 
  • तंबाकू से दूर रहें।
  • खाना बनाने के लिए जैतून तेल (Olive Oil) का प्रयोग करें। 
  • पर्याप्त नीद लें। पर्याप्त नीद नहीं लेने पर शरीर से Stress Hormones निकलते हैं, जो धमनियों को Block कर देते हैं और जलन पैदा करते हैं 
  • आज हमारे जीवन का आधे से भी ज्यादा समय हमारे कार्यस्थल या ऑफिस में बीतता है। घंटों एक ही स्थिति में बैठना हृदय के लिए हानिकारक हो सकता है। 
  • थोड़ा समय व्यायाम के लिए निकालें। प्रतिदिन कम से कम आधे घंटे तक व्यायाम करना हृदय के लिए अच्छा होता है। ऐसा करने से Heart-Attack होने का खतरा एक-तिहाई तक घट जाता है 
  • तनाव हृदय के स्वास्थ के लिए हानिकारक होता है। तनाव के कारण मस्तिष्क से जो रसायन स्रावित होते हैं वे हृदय की पूरी प्रणाली खराब कर देते हैं। तनाव से उबरने के लिए योग का सहारा लिया जा सकता है। 

हृदय की देखभाल के लिए टिप्स – Ways to care for your Heart in Hindi

  • भोजन में तेल रहित खाना ही खाएं।
  • किसी भी तरह की टैश्न से दूर रहने का प्रयास करें तथा अधिक से अधिक खुश रहने का प्रयास करें।
  • अपने बल्ड प्रेशर की समस्या को हल्के में न लें इससे हर्ट टैक की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
  • अपने शरीर पर चर्बी न जमने दें इसके लिए नियमित व्यायाम करें।
  • अपने दैनिक अहार में रेशेदार भोजन का इस्तेमाल करें और अधिक से अधिक हरी सब्जियां और सालाद खाएं।

फेफड़ों की देखभाल – liver Care tips in Hindi

लिवर यानी यकृत (Liver) शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि है। डेढ़ किलोग्राम का लिवर हमारे ऊपरी उदर के दाईं ओर स्थित होता है। यह पेट की रसायन प्रयोगशाला है और पाचन में सहायक कई तरह के रस बनाता है।

लिवर कार्बोहाइड्रेट्स (Carbohydrates) को ग्लाइकोजन के रूप में जमा करके रखता है और जब भी जरूरत होती है यह तुरंत ही इसे ग्लूकोज के रूप में स्त्रावित (Release) कर देता है। हमारे द्वारा लिए गए  नुकसाननदायक पदार्थों को लिवर निष्क्रिय कर देता है और प्रोटीन पैदा करता है जो हमें संक्रमण और रक्तस्त्राव से बचाता है।

अनुमानतः देश में हर साल लगभग दो लाख लोग लिवर की बीमारियों से दम तोड़ देते हैं और इनमें से अधिकतर को स्वच्छ पेयजल, नकली दवाओं के सेवन से बचकर, सही खान-पान का अनुकरण करके और एल्कोहल की मात्रा कम करने जैसे साधारण उपायों से बचाया जा सकता है।

लिवर की देखभाल के लिए क्या करे – How to care Liver in Hindi

लिवर के मामले में इलाज से बेहतर बचाव है। इसलिए आवश्यक है कि स्वस्थ लिवर के लिए जीवनशैली और खान-पान का ध्यान रखना आवश्यक है।

1. स्वस्थ लिवर के लिए जीवनशैली – Lifestyle for Healthy Liver in Hindi

  • सिगरेट और शराब का ज्यादा मात्रा में सेवन करने से लिवर सिरोसिस जैसे गंभीर रोग होने का खतरा रहता है, इसलिए इनका सेवन कम करें।
  • 6 घंटे से कम की नींद लेने से शरीर का मेटाबॉलिज्म प्रभावित होता है और लिवर से जुड़े रोगों का खतरा बढ़ जाता है।
  • सही दिनचर्या का पालन न करना, देर से उठना और देर से सोना भी लिवर को प्रभावित करते हैं।
  • तनाव से भी लिवर की कार्य क्षमता प्रभावित होती है जिसका सीधा प्रभाव पाचन प्रक्रिया पर होता है।

2. स्वस्थ लिवर के लिए खान पान – Diet for Healthy Liver in Hindi

  • पर्याप्त मात्रा में ताजे फल और हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन।
  • ढेर सारा पानी (उबला हुआ या बोतलबंद), फलों का जूस।
  • अत्यधिक तले हुए भोजन से बचने की कोशिश करें।
  • भूख बढ़ाने वाले पदार्थों का प्रयोग करें-7 इंच के आकार की प्लेट का प्रयोग करें. यह मात्रा को नियंत्रित करता है।
  • फलों का जूस, सब्जियों के सूप या छांछ का सेवन करें।
  • भोजन तब ही करें जब आपको भूख लगे और अपनी क्षमता से आधा भोजन ही करें।
  • सब्जियों के दो स्त्रोतों में वसा और तेल की मात्रा 10 फीसदी से अधिक नहीं होनी चाहिएः मूंगफली, जैतून, सरसों, चावल की भूसी और जिंजली ऑयल्स (मक्खन, घी या ट्रांस फैट बिल्कुल नहीं लेने चाहिए)।
  • गुड़, शहद से चीनी 10 फीसदी (टेबल शुगर से बचना चाहिए); नमक (आयोडाइज्‍ड) 5 ग्राम प्रतिदिन।
  • सुबह खाली पेट एक बड़ा गिलास गुनगुना नींबू पानी पिएं। इससे लिवर तो साफ होगा ही, पाचन भी सुधरेगा।
  • खाना बनाने में चुटकी भर हल्दी का इस्तेमाल भी फायदेमंद है। हल्दी लिवर के इन्फेक्शन को ठीक करती है।
  • रोज 6-7 लहसुन की कलियां लें यह लीवर को साफ करता है।

3. स्वस्थ लिवर के लिए व्यायाम – Exercises for Healthy Liver in Hindi

  • ऐसी एक्सरसाइज करें, जिससे पसीना निकले। पसीना निकलने से शरीर की सफाई होती है। ऐसा होने से लिवर पर जोर कम पड़ता है।
  • जॉगिंग, साइकलिंग, आउटडोर गेम्स या खास एक्सरसाइज चुनें। 
  • अर्धमत्स्येंद्रासन, मलासन, अधोमुख आसन स्वस्थ लिवर के लिए अच्छे होते है।

लिवर की देखभाल के लिए टिप्स – Ways to care for your Liver in Hindi

  • लिवर से जुड़ी अधिकतर बीमारियां गंदा पानी पीने के कारण होती हैं। इससे बचने के लिए हमें पानी की स्वच्छता पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
  • शराब पीने वालों में भी लिवर की बीमारियां अधिक देखी जाती है जिससे लिवर में सिकुड़न आ जाता है। इससे बचने के लिए यदि संभव हो तो शराब का सेवन बंद कर दें।
  • व्यक्ति के खाने पीने का भी सीधा असर लिवर पर पड़ता है इसलिए खाने अधिक तली हुई चीजों का सेवन न करें।
  • रोज प्रातः उठकर जितना संभव हो उतना पानी पिये तथा खुली हवा में टहलने जाए।
  • भोजन में अधिक से अधिक मात्रा में हरी सब्जियां तथा जूस का इस्तेमाल करना चाहिए।

दिल का दौरा (हार्ट अटैक) – Heart Attack in Hindi

हार्ट अटैक या हृदय आघात हाल के सालों में सर्वाधिक होने वाली लाइफस्टाइल बीमारी है। हृदय में ब्लॉकेज के कारण होने वाली इस बीमारी से दुनियाभर में कई लोग पीड़ित हैं और कई जान गंवा चुके हैं।  हार्ट अटैक (Heart Attack) के पचास प्रतिशत मरीजों की अस्पताल पहुँचने से पहले ही मृत्यु हो जाती है। हर साल भारत में 30 लाख लोगों की मौत दिल की बीमारी से होती है।

क्या है हार्ट अटैक – What is Heart Attack in Hindi

हमारे दिल का वज़न लगभग 340 ग्राम होता है। शरीर में नियमित रक्त संचार बनाये रखने के लिए हमारा दिल किसी पंप की तरह काम करते हुए एक दिन में एक लाख बार धड़कता है। इस पंप को सदैव चालू रखने के लिये इसमे खून की सप्लाई एक अलग रक्त वाहिका के द्वारा होती हैं, जिसे कोरोनरी आरटेरी (Coronary Artery) कहते हैं। 

समय के साथ कोरोनरी आरटेरी (Coronary Artery) की दीवारो पर चिकनाई जमती रहती है। कैलशियम और अन्य चीज भी उस चिकनाई में जमा होते रहते हैं, उस जमाव को पलाक (Plaque) कहते हैं। पलाक (Plaque) के कारण कोरोनरी आरटेरी का अंदर का व्यास कम हो जाता है, इस कारण दिल के विभिन्न भागों को खून कम मिलता है और दिल सही तरह से काम नहीं कर पाता है। 

जब पलाक (Plaque) की वज़ह से कोरोनरी आरटेरी (Coronary Artery) में रक्त प्रवाह रुक जाता है तो दिल में खून की सप्लाई बंद हो जाती है। इसे दिल का दौरा या हार्ट अटैक (Heart attack) कहते हैं। 

हार्ट अटैक के लक्षण – Heart attack Symptoms in Hindi

  • असामान्य रूप से थकान होना
  • छाती में दर्द होना एवं सीने में ऐठन होना
  • त्वचा पर चिपचिपाहट, उनींदापन, सीने में जलन महसूस होना
  • पसीना आना एवं सांस फूलना
  • महिलाओ में हार्ट अटैक अाने पर कुछ अन्य लक्षण भी देखे सकते है
  • मितली आना, उल्टी होना
  • हाथों, कंधों, कमर या जबड़े में दर्द होना

हार्ट अटैक के कारण – Heart attack Causes in Hindi

हार्ट अटैक होने के कारणों में आसीन जीवन शैली (Sedentary Lifestyle) सबसे बड़ी वजह है। शारीरिक परिश्रम की कमी के कारण शरीर में खून का संचार शरीर में सही ढ़ंग से नहीं हो पाता। इसके अलावा हार्ट अटैक (Heart Attack) के कुछ कारण निम्न हैं: 

  • कोलेस्ट्रोल का बढ़ना
  • उच्च रक्तचाप
  • डायबिटीज
  • मोटापा
  • तनाव 
  • असंतुलित आहार
  • व्यायाम या शारीरिक श्रम में कमी

हार्ट अटैक का इलाज – Heart attack Treatment in Hindi

बचाव ही किसी रोग का सबसे बेहतरीन उपचार होता है। अपनी जीवनशैली को स्वस्थ रख हम इस बीमारी से आसानी से बच सकते हैं। लेकिन इसके बावजूद भी यह रोग हो जाए तो निम्न उपाय अपनाए जा सकते हैं जिसे सीपीआर भी कहते हैं:

हार्ट अटैक में सीपीआर :

  • हार्ट अटैक होने पर रोगी को लिटा दें और जितना हो सके उसके आसपास खुला वातावरण रखें। 
  • रोगी के कपड़ो को ढीला कर दें। 
  • संयम बरतते हुए हथेलियों से रोगी की छाती पर तेज और जोर से दबाव डालें। हर दबाव के बाद छाती में मौजूद कम्प्रेशन को रिलीज करने का प्रयास करें। 
  • इस प्रकिया को 25 -30 बार दोहराएं। 
  • इससे रोगी की धड़कनें फिर से लौट आएंगी। 
  • बिना विलम्ब किये एम्बुलेंस को बुलाए। 
  • डॉक्टर से फोन पर संपर्क कर डॉक्टर की सलाह का सही तरीके से पालन करें। 

पेनिस का साइज – Penis Size in Hindi

बीस से चालीस साल की उम्र के ज्यादातर पुरुष, अपने पेनिस की साइज (Penis Size) को लेकर शंका में रहते हैं कि कहीं उनके लिंग (Ling) का साइज छोटा तो नही है। इसके कारण उनमें हीन भावना आम समस्या है। इस विषय में पुरुष अपने डॉक्टर से भी खुलकर बात नही करते हैं। यह एक तरह की सेक्स समस्या (Sex Problem) है। अधिकतर पुरुषो का लिंग का साइज सामान्य होता है। हालांकि, लिंग के साइज को लेकर लोगों में भ्रांतियां (Misconceptions) ज्यादा है। 

 लिंग का साइज के बारे में – Size of Penis in Hindi

एक अध्ययन के अनुसार, केवल 0.6 % लोगो में लिंग का साइज सामान्य से छोटा होता है और लगभग इतने ही प्रतिशत लोगो के लिंग का साइज सामान्य से बड़ा होता है। शिथिलावस्था में एक औसत पुरुष के लिंग का आकार 3.5 से 3.9 इंच (टिप से बेस तक) तक हो सकता है। 

जबकि सेक्स उत्तेजना के समय पर औसत पुरुष के लिंग की लंबाई 5.8 इंच से लेकर 6 इंच (टिप से बेस तक) तक हो सकती है। लिंग का आकार उम्र के दूसरे 20 साल की उम्र तक ही बढ़ता है लेकिन इसके बाद इसका बढ़ना रुक जाता है।

पेनिस का साइज का इलाज – Penis size Treatment in Hindi

पेनिस (Penis) में अगर रक्त संचार सही रहे तो लिंग का आकर बड़ा प्रतीत होता है। कुछ सामान्य बातों को अपनी रोज़ाना की जिंदगी में शामिल करके रंक्त संचार को बढ़ाया जा सकता है-

  • नियमित व्यायाम
  • उचित आहार लें
  • सब्जियां और फल
  • तनाव रहित जीवनशैली
  • योग आसान 
  • पेनिस पंप – आमतौर पर माना जाता है कि पेनिस पंप पेनिस की साइज को बढ़ाने में मददगार साबित हो सकता है। हालांकि इसका हमेशा प्रयोग खतरनाक हो सकता है क्योंकि इससे नसों को नुकसान पहुंचने का खतरा रहता है।

पथरी (किडनी स्टोन) – Kidney Stone in Hindi

पेट के निचले हिस्से में या मुत्राशय में तेज दर्द पथरी की निशानी हो सकती है। यह एक ऐसी समस्या है जो किसी भी इंसान को हो सकती है। गुर्दे की पथरी में जो दर्द होता है वह बेहद असहनीय हो जाता है। इस बीमारी को समझना और इससे दूर रहने के उपाय जानना बेहद आवश्यक है। 

पथरी (किडनी स्टोन) के बारे में – About Kidney Stone in Hindi

गुर्दे की पथरी (Gurde ki Pathr​i) की समस्या तब पैदा होती है जब गुर्दे (Kidney) के अंदर छोटे-छोटे पत्थर बन जाते है। ये आमतौर पर मध्य आयु यानि चालीस साल या उसके बाद पता लगने शुरू होते है। लेकिन ऐसा जरूरी नहीं है। गुर्दे की पथरी कम आयु वाले बच्चों और युवाओं में भी देखने को मिलती है। 

मूत्र में पाये जाने वाले रासायनिक तत्वों से मूत्र के अंगों में पथरी बनती है। इन तत्वों में यूरिक एसिड, फास्फोरस कैल्शियम और ओ़क्जेलिक एसिड शामिल हैं। लगभग 90 प्रतिशत पथरी का निर्माण कैल्शियम ओक्जेलेट (Calcium Oxalate) से होता है। 

गुर्दे में एक समय में एक या अधिक पथरी हो सकती है। सामान्यत: ये पथरियाँ बिना किसी तकलीफ के मूत्रमार्ग से शरीर से बाहर निकल जाती हैं। हालांकि, यदि ये पर्याप्त रूप से बड़ी हो जाएं, 2-3 मिमी, तो ये मूत्रवाहिनी में अवरोध उत्पन्न कर सकती हैं। इस स्थिति में मूत्रांगो के आस-पास असहनीय पीड़ा होती है। 

गुर्दे की पथरी (Kidney Stone) का दर्द आमतौर पर काफी तेज होता है। पथरी जब अपने स्थान से नीचे की तरफ़ खिसकती है तब यह दर्द पैदा होता है। पथरी गुर्दे से खिसक कर युरेटर और फिर यूरिन ब्लैडर में आती है।

बच्चों में पथरी – Kidney Stone in Kids

कुपोषित बच्चों के मूत्राशय में पत्थर कभी-कभी सामान्य से बड़े बन जाते हैं। ये कुपोषण के कारण शरीर के प्रोटीन के टूट जाने के कारण बनते है। जिसमें पेशाब में फालतू पदार्थों का जमाव हो जाता है। ये कण लवणों के जमाव के लिए केन्द्रक के रूप में काम करते हैं।

गुर्दे की पथरी के लक्षण – Kidney Stone Symptoms in Hindi

  • गुर्दे की पथरी के ज्यादातर रोगी पीठ से पेट की तरफ आते भयंकर दर्द की शिकायत करते हैं
  • दर्द के साथ जी मिचलाने तथा उल्टी होने की शिकायत भी हो सकती है
  • दर्द बाजू, श्रोणि, उरू मूल, गुप्तांगो तक बढ़ सकता है, यह दर्द कुछ मिनटो या घंटो तक बना रहता है तथा बीच-बीच में आराम मिलता है
  • पथरी के लक्षण और चिन्ह पेशाब के पत्थरों का आकार जगह, साइज और पेशाब के बहाव में अवरोध के पैमाने पर निर्भर करता है
  • पीठ के निचले हिस्से में अथवा पेट के निचले भाग में अचानक तेज दर्द, जो पेट व जांघ के संधि क्षेत्र तक जाता है
  • यदि मूत्र संबंधी प्रणाली के किसी भाग में संक्रमण है तो इसके लक्षणों में बुखार, कंपकंपी, पसीना आना, पेशाब आने के साथ-साथ दर्द होना आदि भी शामिल हो सकते हैं ; बार बार और एकदम से पेशाब आना, रुक रुक कर पेशाब आना, रात में अधिक पेशाब आना, मूत्र में रक्त भी आ सकता है। अंडकोशों में दर्द, पेशाब का रंग असामान्य होना
  • यह दर्द रह-रह कर उठता है और कुछ मिनटो से कई घंटो तक बना रहता है इसे ”रीलन क्रोनिन” कहते हैं
  • यह रोग का प्रमुख लक्षण है, इसमें मूत्रवाहक नली की पथरी में दर्दो पीठ के निचले हिस्से से उठकर जांघों की ओर जाता है

गुर्दे की पथरी के कारण – Kidney Stone Causes in Hindi

  • पेशाब की पथरी पेशाब में उपस्थित लवणों व खनिजों के जमाव से बनती हैं। जब लवणों और खनिजों की परतें विभिन्न जगहों पर जमा होती जाती हैं तो इन महीन पत्थरों का आकार बढ़ता जाता है। ये सभी लवण और खनिज खाने की चीजों व पानी से शरीर में आए होते है। कुछ सब्जियां जैसे पालक, अरबी के पत्ते और टमाटरों में बहुत अधिक लवण होते हैं।
  • जमीनी पानी में भी काफी सारे लवण होते हैं। कुएँ या बोरवेल का पानी भी पथरी बनने का कारण होता है। ये लवण धीरे-धीरे करके शरीर में जमा हो जाते हैं और पत्थर बना लेते हैं। 
  • फॉस्फेट और कॉर्बोनेट के पत्थरों की सतह मुलायम होती है और ऑक्जेलेट के पत्थरों की खुरदुरी । इस कारण से ऑक्जेलेट के पत्थरों के कारण खून भी निकल सकता है।
  • पथरी एक आम बीमारी है जो अकसर गलत-खानपान के कारण भी हो जाती है। इस बीमारी के कुछ मुख्य कारण निम्न हैं: 
  • हर दिन पानी की पर्याप्त मात्रा का सेवन न करना
  • कैफीन और शराब का अधिक उपयोग करना
  • मूत्र मार्ग में संक्रमण होना

गुर्दे की पथरी का इलाज – Kidney Stone Treatment in Hindi

​गुर्दे की पथरी होने पर कई बार घरेलू उपाय भी कारगर होते हैं। गुर्दे की पथरी होने पर ज्यादा से ज्यादा खान-पान पर ध्यान देना चाहिए। इसके अलावा गुर्दे की पथरी होने पर निम्न उपाय भी अपनाने चाहिए जैसे: 

  • पथरी के मरीज को दिन में कम से कम 5-6 लीटर पानी पीना चाहिये। पथरी होने पर पर्याप्त जल पीयें ताकि 2 से 2.5 लीटर मूत्र रोज बने। अधिक मात्रा में मूत्र बनने पर छोटी पथरी मूत्र के साथ निकल जाती है
  • आहार में प्रोटीन, नाइट्रोजन तथा सोडियम की मात्रा कम हो। 
  • ऐसा भोजन करें जिनमें आक्जेलेट् की मात्रा अधिक हो; जैसे चाकलेट, सोयाबीन, मूंगफली, पालक, आदि के साथ कोल्ड ड्रिंक्स से दूर रहें। 
  • नारंगी आदि का रस (जूस) लेने से पथरी का खतरा कम होता है। 
  • डॉक्टर पथरी के मरीजों को अंगूर और करेला आदि भी खाने की सलाह देते हैं। 

कद बढ़ाना – Kad Badhana (Height Gain) in Hindi

बच्चोँ में शारीरिक विकास एक आम प्रक्रिया होती है। बच्चों की लम्बाई या कद (Height) का सामान्य रूप में बढ़ना इसी विकास का महत्वपूर्ण सूचक है। लंबाई का बढ़ना यूं तो आनुवांशिक होता है लेकिन कई बार पोषण की कमी या कुछ अन्य कारणों से बच्चों की लंबाई बहुत कम रह जाती है। 

जानें सही लंबाई – Know How to increase Height in Hindi

किसी आयु में बच्चे की औसत लंबाई को जानने के लिए आयु को 6 से गुणा कर 77 सेंटीमीटर से जोड़ें। यदि किसी बच्चे की लंबाई इससे कम हो या एक वर्ष में 6 सेंटीमीटर से कम बढ़ रही है तो यह चिंता का विषय है। 

कब तक बढ़ती है हाइट – Age Till Height Increase in Hindi

ऐसा पाया गया है की बच्चों की लंबाई 20 वर्ष तक बढ़ती है। लड़कियों में मासिक धर्म आरंभ होने के बाद लंबाई कम बढ़ती है। इस आयु के बाद लंबाई के बढ़ने की रफ्तार बेहद कम हो जाती है। 

कद न बढ़ने के लक्षण – Kad Na Badhane (Height Gain) ke Lakshan in Hindi

आयु अनुसार कद कम होना

कद बढ़ाना के कारण – Kad badhana (Height Gain) Causes in Hindi

किसी व्यक्ति की लम्बाई (Height) निर्धारित करने में कुछ बातों का खास महत्व होता है, जैसे – अनुवांशिक, खान-पान में पौष्टिकता, वातावरण, विकास हॉर्मोन्स। लंबाई कम रह जाने की दशा में कुछ अहम कारक निम्न है: 

बच्चों में लंबाई ना बढ़ने के कारक – Reason for Growth Failure in Children in Hindi

1. अनुवांशिक : बच्चों की लंबाई माता और पिता की लंबाई पर भी निर्भर करती है। अमेरिका के टफ्ट्स विश्वविद्यालय के एक शोध में ऐसा पाया गया किसी व्यक्ति के कद का निर्धारण करने में 60 से 80 प्रतिशत योगदान हमारी जीन्स (Genes) का और 20 से 40 प्रतिशत हमारे खाने पीने, खासकर पौष्टिक चीजों और वातावरण का होता है।

2. आहार और पोषण: यदि उचित आहार और पोषण के बाद भी बच्चों की लंबाई न बढ़ रही हो तो डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। डॉक्टर बच्चों के विकास की ग्रोथ चार्ट द्वारा अन्य बच्चों एवं उनके अभिभावकों से तुलना करते हैं और अगर आवश्यक हो तो ग्रोथ हार्मोन के प्रयोग का सुझाव भी देते हैं। ग्रोथ हार्मोन द्वारा बच्चों की लंबाई 20-25 सेंटीमीटर तक बढ़ जाती है। ग्रोथ हार्मोन केवल डॉक्टर के सुझाव से ही लें । 

3. हैवी वेटलिफ्टिंग: छोटी उम्र में हैवी वेटलिफ्टिंग से भी लंबाई का बढ़ना रूक जाता है। इसलिए कोशिश करनी चाहिए कि बच्चों को छोटी-उम्र में ज्यादा भारी सामान ना उठाना पड़े। 

कद बढ़ाना का इलाज – Kad badhana (Height Gain) Treatment in Hindi

​बच्चों को शारीरिक विकास के समय सही मार्गदर्शन और पोषण देकर हाइट (Height Gain) की परेशानी से दूर रहा ज सकता है। लेकिन इसके बावजूद भी अगर समस्या हो तो निम्न उपाय करने चाहिए: 

कैसे पाएं अच्छी हाइट – Tips for Height Gain in Hindi

  • बच्चें के शारीरिक विकास पर पूरी तरह नजर रखें। अगर कोई परेशानी हो तो जल्द से जल्द डॉक्टर से सलाह लें। 
  • पौष्टिक आहार लें: आहार में प्राकृतिक प्रोटीन की मात्र आपके वजन के अनुसार होनी चाहिए यानि प्रति किलोग्राम वजन पर 1 ग्राम प्रोटीन हमें दिन में अवश्य लेना चाहिए।
  • कुछ योग आसान भी लम्बाई बढ़ाने में लाभदायक सिद्ध होते है। 

मिर्गी – Epilepsy in Hindi

मिर्गी एक ऐसा रोग है, जिसमें व्यक्ति अचानक जमीन पर गिर कर प्रायः अर्द्ध मूर्छितावस्था में रहता है। रोगी को इसका पूर्वाभास भी नहीं होता, कि उसे मिरगी (Epilepsy) का दौरा पड़ने वाला है।

 मिर्गी के बारे में –  About Epilepsy in Hindi

किसी कारणवश यदि मस्तिष्क में विकार उत्पन्न हो जाये, जैसे चोट लग जाने के पश्चात, संक्रमण की वजह से या किसी रोग विशेष के कारण, तो मस्तिष्क से प्रसारित होने वाले संदेश गड़बड़ा जाते हैं। इसकी वजह से मांसपेशियों की गतिविधियों में विकार उत्पन्न हो। मांसपेशियां झटके देने लगती हैं, ऐंठ जाती हैं या मरोड़ खाने लगाती हैं। इसे ‘कन्वलशन’ (Convulsions) के नाम से जाना जाता है। इसे ही मिरगी का दौरा (Mirgi ke Dore) पड़ना कहा जाता है।

इसमें रोगी हांफता है, मुंह से झाग उगलता है। उसकी आंखें फटी-फटी सी और पलकें स्थिर हो जाती हैं तथा गर्दन अकड़कर टेढ़ी हो जाती है। रोगी हाथ-पैर पटकता है, उसके दांत भिंच जाते हैं और मुट्ठियां कस जाती हैं। वह अजीब सी आवाज करने लगता है। दौरे के समय रोगी को सांस लेने में भी कष्ट होता है।

मिरगी का दौरा जन्म लेने के बाद किसी भी उम्र में पड़ सकता है। स्कूल जाने वाली उम्र के हर 200 में से एक बच्चे को मिरगी का दौरा पड़ता है। इनमें से 10 प्रतिशत को गंभीर दौरे पड़ते हैं। साठ फीसदी मामलों में कोई प्रत्यक्ष कारण सामने नहीं आता।

मिर्गी के लक्षण – Epilepsy Symptoms in Hindi

इन्हें तीन अवस्थाओं में बांटा जा सकता है। प्रथम अवस्था-सारा शरीर तन जाता है। यह अवस्था 30 सेकंड से अधिक नहीं होती, मरीज अपनी जीभ को दांतों से चबा सकता है। कई मरीजों को कपड़ों में पेशाब या पाखाना भी हो जाता है। द्वितीय अवस्था- यह अधिक उग्र होती है, दो से पांच मिनटों तक बनी रहने वाली इस अवस्था के दौरान मरीज को तेल झटके आते हैं। उसके मुंह से झाग निकलकर बाहर बहने लगता है, होंठ और चेहरा नीले पड़े जाते हैं। तृतीय अवस्था-झटके आना बंद हो जाता है। मरीज या तो होश में आ जाता है या वह फिर ऐसी अवस्था में रहता है।

मिर्गी के कारण – Epilepsy Causes in Hindi

मिरगी के दौरे मुख्यत: दिमागी कमजोरी के कारण आते हैं। यह कमजोरी अनुवांशिक या किसी अन्य कारण से भी हो सकती है। मिरगी के दौरे (Mirgi ke Daure) पड़ने के कुछ अहम कारण निम्न हैं:

  • यह रोग सामान्यत: मस्तिष्क की कमजोरी के कारण होता है। 
  • मस्तिष्क में रक्तस्राव होना या खून का थक्का जम जाने (स्ट्रोक) के कारण भी मिरगी के दौरे आते हैं। 
  • सिर में चोट लगने या मस्तिष्क संक्रमण के कारण 
  • गर्भावस्था की जटिलताओं की वजह से माता को गर्भावस्था में हुए दिमागी संक्रमण
  • दिमाग में कोई गांठ 
  • दिमागी बुखार
  • दिमाग में किसी वजह से सूजन या विषैले पदार्थ का दिमाग में पहुँचना 
  • अत्यधिक तेज बुखार
  • खसरा या गलसूजा
  • निम्न रक्तचाप के कारण भी मिरगी की बीमारी हो सकती है। 

मिर्गी का इलाज – Epilepsy Treatment in Hindi

मिरगी के मरीज को दौरा आता है जिस दौरान उसके शरीर की गतिविधियां सामान्य नहीं रहती। इस दौरान अगर मरीज को सही उपचार ना मिले तो स्थिति चिंताजनक हो सकती है। मिरगी का दौरा आने पर निम्न उपाय अपनाने चाहिए:

मिर्गी के दौरे आने पर क्या करें – Treatment of Epilepsy in Hindi

  • मरीज को जमीन पर या समतल स्थान पर लिटा दें। 
  • उसके आसपास से तेज, नुकीली या चुभने वाली वस्तुओं को हटा दें। 
  • झटकों को आने दिया जाये। जैसे ही झटके बंद हो जायें, मरीज को विश्राम की स्थिति में लिटा दें और उसकी गर्दन एक ओर मोड़ दें ताकि मुंह में जमा लार और झाग बाहर निकल जाए। 
  • याद रखिये, झटकों के दौरान मरीज में मुंह में कुछ न रखिये, अक्सर मरीज को दांतों पर दांत कसते देख लोग उसके मुंह में चम्मच या अन्य वस्तु रख देते हैं। मगर ऐसा करना खतरनाक सिद्ध हो सकता है क्योंकि ऐसा वस्तु टूटकर सांस के रास्ते में जा सकती है या मरीज के दांत टूट सकते हैं।
  • कसे हुए या बाधा उत्पन्न करने वाले वस्त्रों को निकाल दें। 
  • इस बीच चिकित्सक से संपर्क कर या तो उसे वहीं बुला लें या फिर मरीज को अस्पताल ले जाएं। 

बाल झड़ना – Hair Fall in Hindi

सामान्यतः प्रतिदिन हमारे लगभग 50 से 100 बाल हर दिन टूटते-झड़ते हैं। यदि इससे ज्यादा बाल झड़ते (Hair Fall) हैं, तो यह चिंता का विषय है। बाल झड़ने के पीछे तनाव, इन्फेक्शन, हार्मोन्स का असंतुलन, पोषक पदार्थों की कमी, दवाओं के साइड इफेक्ट्स, लापरवाही बरतना या बालों की सही देखभाल न करना, घटिया साबुन और शैंपू का प्रयोग आदि कई कारण हो सकते हैं। 

कब-कब झड़ सकते हैं बाल – Reasons of Hair Fall in Hindi

चिकित्सा विज्ञान के आधार पर बालों के झड़ने की कई वजहें होती हैं। जिनमें से कुछ खास कारण निम्न हैं: 

  • लंबी बीमारी, बड़े ऑपरेशन या किसी गभीर संक्रमण के कारण बालों का झड़ना सामान्य माना जाता है।
  • शारीरिक, मानसिक तनाव या डिप्रेशन की बीमारी के दो या तीन महीने के बाद बालों का झड़ना एक सामान्य प्रक्रिया है।
  • हार्मोन स्तर में आकस्मिक बदलाव के बाद भी यह हो सकता है, विशेषकर स्त्रियों में बच्चें के जन्म के बाद यह हो सकता है।
  • अत्यधिक द्वाईंयों के सेवन से या किसी एलर्जी के कारण भी कई बार बाल झड़ते हैं। 
  • बालों का झड़ना कई बीमारियों का लक्षण भी माना जाता है विशेषकर थाइरॉयड में यह महत्वपूर्ण निशानी माना जाता है। 
  • सेक्स हार्मोन में असंतुलन के कारण भी बाल झड़ते हैं। 
  • आहार में सतुंलन के कारण भी कई बार बाल झड़ते हैं विशेषकर अगर खाने में आप प्रोटीन, लौह तत्व या जस्ता आदि की कमी हो तो। यह कमी खान-पान में परहेज करने वालों और जिन महिलाओं को मासिक धर्म में बहुत ज्यादा रक्त स्राव होता है, में आम है।
  • सिर की त्वचा (खोपड़ी) में जब विशेष प्रकार की फफूंद से संक्रमण हो जाता है तो बीचों बीच में बाल झड़ने लगते हैं। बच्चों में आमतौर पर बीचों बीच के बाल झड़ने का संक्रमण पाया जाता है।
  • पुरुषों में अक्सर मांग से बालों का झड़ते हैं या फिर सिर के ऊपर से। पुरुषों में इस प्रकार बालों का झड़ना आम है और यह किसी भी समय यहां तक कि किशोरावस्था में भी आरंभ हो सकता है।

बालों का झड़ना के लक्षण – Hair Fall Symptoms in Hindi

  • कंघी करते हैं और बालों का गुच्छा आपके हाथों में होता है
  • बाल आपके कपड़ों के साथ भी चिपके होते हैं
  • बालों में हाथ डालते हैं, तो आपके बाल हाथ में आ जाते हैं

बालों का झड़ना के कारण – Hair Loss Causes in Hindi

बालों के झड़ने के कई कारण होते हैं जैसे मां-बाप से लगी बीमारी, डैंड्रफ, तनाव आदि। डॉक्टरों के अनुसार अधिक मात्रा में बाल झड़ने के मुख्य कारण निम्न माने जाते हैं: ​

  • पुरुष हार्मोन
  • वंशानुगत गंजापन:​ अगर पेरेंट्स या ग्रैंड पेरेट्स में से किसी को बालों के झड़ने या गंजेपन की समस्या है, तो बच्चों में भी ऐसा होने की आशंका ज्यादा होगी।
  • बढ़ती हुई आयु में भी बालों का झड़ना आम बात होती है। 
  • इंफेक्शन और डैंड्रफ फंगल इंफेक्शन से बाल झड़ सकते हैं। 
  • हालांकि थोड़ी-बहुत डैंड्रफ होना सामान्य है, खासकर मौसम बदलने पर, गर्मियों और बरसात की शुरूआत में, लेकिन ज्यादा होने पर यह बालों की जड़ों को कमजोर कर देती है। यह ड्राई और मॉइश्चर, दोनों रूप में हो सकती है। इससे बचाव के लिए साफ-सफाई का पूरा ख्याल रखें।
  • प्रदूषण और तनाव, बालों को गंवाने की अहम वजह है।
  • मानसून सीज़न में अकसर बाल झड़ने की समस्या आ जाती है। 
  • असंतुलित भोजन करने से शरीर को आवश्यक पोषण नहीं मिलता जो कई बार बाल झड़ने का कारण बनता है। 
  • कोई शारीरिक बीमारी जैसे थाइरॉयड के होने पर भी बाल झड़ने की समस्या देखने को मिलती है। 
  • अनियमित जीवनशैली और सौंदर्य प्रसाधनों का अनुचित इस्तेमाल करना भी बाल झडने की समस्या को न्यौता देते हैं। 

बालों का झड़ना का इलाज – Hair Fall Treatment in Hindi

झड़ते बालों से निजात पाने के लिए हमें सबसे पहले अपनी जीवनशैली को देखना चाहिए। असंतुलित आहार या गलत उत्पादों का प्रयोग बाल झड़ने का मुख्य कारण होता है। इनसे बचने के लिए कुछ मुख्य उपयोगी उपाय (Remedies for Hair fall in Hindi) निम्न हैं: 

  • बालों को झड़ने से रोकने के लिए स्वस्थ जीवनशैली अपनायें।
  • तनाव कम कर, उचित आहार लेकर भी झड़ते बालों से निजात पाया जा सकता है। 
  • बाल संवारने की उचित तकनीक अपनाकर और यदि संभव हो तो बालों को झड़ने से रोकने वाली दवाइयों का उपयोग कर बालों के झड़ने की समस्या को रोका जा सकता है।
  • किसी भी प्रकार के संक्रमण से बचने के लिए बालों की सफाई पर ध्यान देना चाहिए। झड़ते बालों की समस्या से रहने के लिए दूसरों के ब्रश, कंघी, टोपी आदि का उपयोग नहीं करना चाहिए। 
  • कई बार दवाइयों की सहायता से वंशानुगत गंजेपन के कुछ मामलों को भी रोका जा सकता है। ऐसी दवाइयां डॉक्टर की सलाह से ही लें। 

छोटे स्तन – Small Breast in Hindi

अधिकतर महिलाएं छोटे या बड़े स्तनों की समस्या को लेकर परेशान रहती हैं। सुदृढ़ और पुष्ट स्तन (Breast) स्त्री की सुन्दरता में चार चाँद लगाते हैं। 

छोटे स्तनों की समस्या – Small Breast Problem in Hindi

स्तन छोटे रह जाने का सबसे प्रमुख कारण पोषण संबंधी गड़बड़ी होता है। जिस समय लड़की बचपन से युवावस्था की तरफ कदम बढ़ाती है वह समय शारीरिक विकास की दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण होता है। इस समय शरीर को भरपूर पोषण की आवश्यकता होती है। अगर इस समय वह अपने खान पान पर ध्यान नहीं देती है और उसके शरीर को पूर्ण पोषण नहीं मिलता है तो उसका शारीरिक विकास अधूरा रह जाता है। इसी अपूर्णता या अधूरे पोषण के कारण कई युवतियों का वक्ष (Breast) अपना स्वाभाविक आकार नहीं ले पाता है।

होर्मोन की कमी के कारण छोटे स्तन – Small Breast Due to Harmonal Issues in Hindi

दूसरा सबसे प्रमुख कारण होर्मोनों की कमी और असंतुलन होता है। होर्मोनों की कमी भी पोषण में कमी के कारण ही होती है। होर्मोनों की कमी और असंतुलन का एक प्रमुख कारण मानसिक विषाद भी होता है। युवावस्था की दहलीज़ पर कदम रखते वक्त अगर लड़की के घर का पारिवारिक माहौल ठीक नहीं होता है और उसे अपने संबंधी और परिजनों से डांट-फटकार और तिरस्कार मिलता है तो वह मानसिक विषाद की अवस्था में चली जाती है और यह हॉर्मोन असंतुलन का सबसे प्रमुख कारण है। आनुवंशिक कारणों से भी स्त्री के स्तनों का आकार छोटा (Issue of Small Breast) होता है किन्तु व्यवहार में ऐसा देखा जाता है कि बहुत ही कम स्त्रियों के अविकसित वक्ष का मूल कारण आनुवंशिक होता है। 

छोटे स्तन के कारण – Small Breast Causes in Hindi

महिलाओं में छोटे स्तन की मुख्य समस्या आहार की कमी को माना जाता है। इनके अलावा कुछ कारण निम्न हैं: 

  • संतुलित पौष्टिक आहार न लेना
  • व्यायाम न करना
  • हार्मोनल समस्या 
  • ग्रोथ इयर यानि युवावस्था में तनाव लेना 

छोटे स्तन का इलाज – Small Breast Treatment in Hindi

छोटे स्तनों की समस्या को दूर करने के कई उपाय होते हैं लेकिन सबसे अहम है युवास्था की दहलीज पर सही खान-पान और तनाव ना लेना। स्मॉल ब्रेस्ट की समस्या से निजात पाने के कुछ उपयोगी उपाय निम्न हैं:

1. खान पान – Diet to increase Breast Size

स्तन छोटे रह जाने पर उन्हें बड़ा करने के लिए विटामिन युक्त संतुलित पौष्टिक आहार लें।

2. छोटे स्तनों के लिए व्यायाम – Excercise for Small Breats

तैरना, रस्सी कूटना, रॉड पकड़कर झूलना स्तन के संतुलित विकास के लिए व्यायाम है।

3. पानी से  बढ़ाएं स्तन – Use of Water to Increase Breats

स्तनों पर ठंडे पानी की बौछारें दें। इससे स्तनों (Stan) की कोशिकाओं में रक्त संचार अच्छी तरह होगा और स्तनों का विकास सही ढंग से होगा। सथा ही नहाते समय स्तनों को गुनगुने पानी से धोएं। इसके तुरंत बाद ठंडे पानी से धोएं। ऐसा पांच-छह बार करें। तापमान के जल्दी से बदलने से स्तनों की कोशिकाओं में तेजी से रक्त संचार होता है और स्तन विकसित होते हैं।

4. छोटे स्तनों के लिए मसाज – Massage for Small Breast

रात को सोते समय बादाम या जैतून के तेल की स्तनों पर मालिश करें। बादाम या जैतून के तेल में पाए जाने वाले विटामिन ए, ई, कैल्शियम, पोटैशियम, मैग्नीशियम और एमिनो एसिड स्तनों को पुष्ट बनाते हैं, उनका विकास करते हैं। साथ ही मालिश से स्तनों में सही प्रकार से रक्त का संचालन होता है। 

अंदर धंसे हुए निप्पल के लिए घरेलू उपाय – Remedies for Sore Nipples in Hindi

किसी-किसी महिला के स्तनों के निप्पल अंदर की तरफ रह जाते हैं। ऐसी स्थिति में प्लास्टिक की एक बोतल में गरम पानी भरें। फिर इसे खाली कर दें। बोतल में भाप रह जाएगी। अब बोतल के मुंह में निप्पल को डालकर, बोतल को इस तरह से दबाकर रखें, जिससे बाहर की हवा अंदर न जा सके। जैसे-जैसे बोतल की भाप ठंडी होती जाएगी, वैसे-वैसे निप्पल बाहर की ओर खिंचता जाएगा। बोतल ठंडी होने पर हटा दें। पांच-छह बार ऐसा करें। यह उपाय नियमित करने से अंदर की ओर धंसे निप्पल बाहर निकल आते हैं। हालांकि ऐसी किसी भी प्रयोग से पहले डॉक्टर से अवश्य सलाह लें। 

लू लगना – Heat Stroke in Hindi

गर्मी में सबसे बड़ी समस्या होती है लू लगना। अंग्रेजी भाषा में इसे हीट स्ट्रोक (Heat Stroke) और सनस्ट्रोक (Sun Stroke) भी कहते हैं। गर्मी में उच्च तापमान में ज्यादा देर तक रहने से या गर्म हवा के झोंकों से संपर्क में आने पर लू (Loo) लगने का डर अधिक होता है।

कब लगती है लू?

गर्मी में शरीर के द्रव (Body Fluids) सूखने लगते हैं। शरीर से पानी और नमक की कमी होने पर लू लगने का खतरा ज्यादा रहता है। लू लगने पर शरीर में गर्मी, खुश्की और थकावट महसूस होती है। इसमें गर्मी के कारण होने वाली और कई मामूली बीमारियां भी शामिल होती हैं जैसे कि हीट एडेमा (शरीर का सूजना), हीट रैश, हीट क्रैम्प्स (शरीर में अकड़न) और हीट साइनकॉप (बेहोशी) आदि।

चिकित्सक शरीर के तापमान को 105 डिग्री फारेनहाइट से अधिक रहने पर और शरीर के सेंट्रल नर्वस सिस्टम में जटिलताओं के पेश आने पर लू लगना (Heat Stroke) कहते हैं। गर्मी में अधिक शारीरिक गतिविधि करने पर, मोटे कपड़े पहनने पर, ज्यादा शराब पीने पर और कम पानी पीने पर लू लगने का खतरा सबसे ज्यादा मंडराता है।

लू लगना के लक्षण – Heat Stroke Symptoms in Hindi

  • आँखें भी जलती हैं
  • इससे अचानक बेहोशी व अंततः रोगी की मौत भी हो सकती है
  • बुखार काफी बढ़ जाता है
  • ब्लडप्रेशर भी लो हो जाता है और लिवर – किडनी में सोडियम पोटैशियम का संतुलन बिगड़ जाता है। ऐसे में बेहोशी भी आ सकती है। इसके अलावा लो बीपी , ब्रेन या हार्ट स्ट्रोक की स्थिति भी बन सकती है
  • लू लगने पर शरीर में गर्मी , खुश्की , सिरदर्द , कमजोरी , शरीर टूटना , बार – बार मुंह सूख.ना , उलटी , चक्कर , तेज बुखार सांस लेने में तकलीफ , दस्त और कई बार निढाल या बेहोशी जैसे लक्षण नजर आते हैं। लू लगने पर पसीना नहीं आता
  • शरीर का तापमान एकदम बढ़ जाता है। अक्सर बुखार बहुत ज्यादा मसलन 105 या 106 डिग्री फॉरनहाइट तक पहुंच जाता है
  • हाथ और पैरों के तलुओं में जलन-सी होती रहती है

लू लगना के कारण – Heat Storkes Causes in Hindi

लू लगने के कारण दिमाग और आंतरिक अंगों को क्षति पहुंच सकती है। वैसे तो लू का शिकार अक्सर पचास से ऊपर की उम्र के लोग होते हैं लेकिन कई स्वस्थ खिलाड़ी भी इसका शिकार आसानी से हो जाते हैं। कम उम्र के लोगों में सेंट्रल नर्वस सिस्टम विकसित हो रहा होता है तो ज्यादा उम्र के लोगों में दूषित होता है, जिसके कारण इन दोनों को ही लू का खतरा सबसे ज्यादा रहता है।

लू लगने के दौरान व्यक्ति को शरीर में पानी की कमी यानि डीहाइड्रैशन की शिकायत भी होने लगती है। हीट स्ट्रोक का तुरंत इलाज ना कराने पर मस्तिष्क, हृदय, गुर्दे और मांसपेशियों को नुकसान पहुंच सकता है। कई स्थितियों में मरीज़ की मृत्यु भी हो सकती है।

गर्मी में विभिन्न दवाइयों का सेवन करने वाले व्यक्तियों को भी लू लगने का डर होता है। ऐसी दवाएं जो रक्त धमनियों (ब्लड वेसल्स) को संकीर्ण करें, एड्रेनालाईन के रास्ते में अवरुद्ध पैदा कर रक्तचाप को नियंत्रित करें, शरीर से सोडियम और पानी को बाहर निकालें और एंटीडिप्रसेंट्स हों, लू लगने के खतरे को और बढ़ाती हैं।

लू लगना का इलाज – Heat Storkes Treatment in Hindi

गर्मी के दिनों में कम से कम बाहर निकलकर लू से बचा जा सकता है। हालांकि अगर ऐसा संभव ना हो तो गर्मी के दिनों में अधिक से अधिक पानी पीना चाहिए और खाली पेट घर से नहीं निकलना चाहिए। अगर किसी को लू लग जाए तो उसे निम्न तरीके से उपचार (First Aid Treatment for Heat Stroke) देने का प्रयास करना चाहिए:

  • आहत व्यक्ति को पहले छांव में ला कर हवा का इंतजाम करें। गर्मी के कारण शरीर का तापमान बढ़ जाता है। छाया में लाने से शरीर का तापमान सामान्य आना शुरु हो जाता है।
  • उसको नमक शक्कर और पानी का घोल मुँह से पिलायें, उसके कपड़े निकालकर सिर्फ अंदरूनी वस्त्र रखें। शरीर पर हल्का सा गर्म पानी छिड़कें।
  • गीली चादर में लपेटकर तापमान कम करने का प्रयास करें।
  • हाथ पैर की मालिश करें जिससे रक्त संचरण प्रभावित होता है।
  • संभव हो तो बर्फ के टुकड़े कपड़े में लपेटकर गर्दन, बगलों और जांघों पर रखे। इससे गर्मी जल्दी निकलती है।
  • धूप में घर से बाहर निकलें तो छतरी का इस्तेमाल करें। नंगे बदन और नंगे पैर धूप में ना खड़े हों।
  • नींबू पानी, आम पना, छाछ, लस्सी, नारियल पानी, बेल या नींबू का शर्बत, खस का शर्बत जैसे तरल पदार्थ पीते रहें।
  • ढीले और सूती कपड़े पहनें।
  • खाली पेट बाहर ना जाएं और थोड़ी थोड़ी देर पर पानी पीते रहें।
  • गर्मी से एकदम ठंडे कमरे में ना जाएं।
  • दिन में दो बार नहाएं।
  • हरी सब्जियों का सेवन अधिक करें।
  • खीरा, ककड़ी, लौकी, तौरी जरूर खाएं।
  • ठंडे वातानुकूलित कमरे में रहें।
  • इमली के गूदे को हाथ पैरों पर मलें।
  • शरीर का तापमान तेज होने पर सिर पर ठंडी पट्टी रखें।
  • घर से बाहर निकलते समय जेब में कटा प्याज रखें।