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हाई बीपी – High BP (High Blood Pressure) in Hindi

हाई ब्लड प्रेशर या उच्च रक्तचाप की समस्या आजकल बेहद आम होती जा रही है। उच्च रक्तचाप के दौरान मरीज के शरीर में रक्त का प्रवाह बेहद तेज हो जाता है। इस स्थिति में आपके हृदय को अधिक काम करना पड़ता है। आइये जानें इससे जुड़ी अन्य बातें: 

हाई बीपी के बारे में – About High BP (High Blood Pressure) in Hindi

रक्त द्वारा धमनियों पर पड़ने वाले दबाव को ब्लड प्रेशर कहते हैं। सामान्यतः हमारी धमनियों में बहने वाले रक्त का एक निश्चित दबाव होता है, जब यह दबाव अधिक हो जाता है तो धमनियों पर दबाव बढ़ जाता है और इस स्थति को उच्च रक्तचाप (High Blood Pressure) से जाना जाता है| लगातार उच्च रक्तचाप शरीर को कई तरीके से हानि पहुंचा सकता है। यहाँ तक की हार्ट फेल भी हो सकता है।

1. सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर – Systolic Blood Pressure

निलयी प्रकुंचन (Ventricular systole) के दौरान रक्त को महाधमनी में धकेलने लिए बायें निलय (Ventricle) के संकुचित होने पर बनने वाला अधिकतम रक्त-चाप सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर कहलाता है।

2. औसत ब्लड प्रेशर – Blood Pressure Range in Normal Condition)

सामान्य स्वस्थ वयस्क का विश्रामावस्था में सिस्टोलिक प्रेशर का परिसर 100 Hg. से 140 मिमी. पारे के बीच रहता है तथा औसतन 120 मिमी पारे के बीच रहता है।

हाई बीपी के लक्षण – High BP (High Blood Pressure) Symptoms in Hindi

  • उल्टी होने की शिकायत और चिडचिडापन
  • कम मेहनत करने पर साँस फूलना, थकावट रहना
  • चक्कर आना
  • टांगों में दर्द
  • तनाव होना
  • नाक से खून आना
  • नींद न आना
  • लगातार सिरदर्द होना, सिर चकराना
  • सांस लेने में कठिनाई
  • सिर के पीछे व गर्दन में दर्द
  • हृदय की धड़कन तेज रहना
  • हृदय क्षेत्र में पीड़ा महसूस करना

हाई बीपी के कारण – High BP (High Blood Pressure) Causes in Hindi

उच्च रक्तचाप के होने में बहुत सारे फैक्टर्स अहम भूमिका निभाते हैं जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण है आसीन जीवनशैली। शारीरिक श्रम की कमी के कारण भी कई बार यह बीमारी लोगों को परेशान करती है। उच्च रक्तचाप के कई अन्य कारण निम्न हैं: 

  • धूम्रपान
  • मोटापा
  • निष्क्रियता
  • नमक का ज्यादा सेवन
  • शराब पीना
  • तनाव
  • बढ़ती उम्र
  • आनुवंशिकता
  • पारिवारिक इतिहास
  • पुरानी किडनी की बीमारी
  • थाइरोइड डिसऑर्डर 

हाई बीपी का इलाज – High BP (High Blood Pressure) Treatment in Hindi

रक्तचाप (Blood Pressure) बढ़ने पर किस तरह अपना ध्यान रखना इसकी जानकारी होना बेहद जरूरी है। साथ ही समय-समय पर डॉक्टरी जांच इस बीमारी से बचाने में बहुत कारगर होती है। उच्च रक्तचाप से बचने के कुछ प्रमुख उपाय निम्न हैं: 

  • प्रतिदिन एक घंटा हल्का या तेज किसी प्रकार का व्यायाम जरूर करें।
  • खाने में हाई फाईबर वाले चीजें लेनी चाहिए। 
  • खुद को एक्टिव रखने का अधिक से अधिक प्रयास करना चाहिए। 
  • समय-समय पर डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए। 

कब्ज – Constipation in Hindi

कब्ज एक बेहद आम बीमारी बन चुकी है। मल त्याग एक प्राकृतिक क्रिया है। लेकिन जब मल त्याग करने में अगर परेशानी आती है तो उस समस्या को कब्ज (Kabj) कहते हैं। अनियमित खानपान और गलत जीवनशैली के कारण यह बीमारी लगातार बढ़ती जा रही है।

कब्ज क्या है  – About Constipation in Hindi

कब्ज का अर्थ बहुत कड़ा मल या मल त्याग करने में कठिनाई होती है। अगर भोजन में रेशे (फाइबर) या पानी की मात्रा कम हो तो आंतों में भोजन धीरे धीरे खिसकता है और बड़ी आंत (Large intestine) उसमे से पानी सोखती रहती है जिसके कारण वह धीरे धीरे कड़ा हो जाता है और मल त्यागने में दिक्कत आती है। 

कब्ज के लक्षण – Kabj Symptoms in Hindi

  • ऐंठन हो, दर्द हो, पेट फूल जाए या मतली हो
  • ऐसा महसूस हो कि आपकी अँतड़ियां पूरी तरह से खाली नहीं हुई हो
  • मल त्याग के लिए ज़ोर लगाना पड़े

कब्ज के कारण – Causes for Constipation in Hindi

  • ऐसे आहार जिनमें चर्बी और शक्कर ज्यादा हों और रेशे कम हों।
  • काफी मात्रा में तरल पदार्थ न लेना।
  • निष्क्रिय रहना।
  • जब आप को मल त्याग की इच्छा हो तब शौचालय न जाना।

कब्ज़ का इलाज – Treatment of Constipation in Hindi

कब्ज़ को दूर करने का सबसे उपयोगी उपाय अधिक मात्रा में पानी पीना और खाने में फाइबर को शामिल करना होता है। कुछ अन्य उपाय निम्न हैं: 

  • दिन में कम से कम 8-10 गिलास पानी पीना चाहिए। गुनगुने या गरम पानी से आपकी आँतों को आसानी से काम करने में मदद मिल सकती है।
  • ब्रैन सिरियल, होल ग्रेन ब्रेड, कच्ची सब्जियां, ताजे या सुखाये हुए फल, सूखा मेवा और पॉपकॉर्न जैसी अधिक रेशे वाली चीजें खाइए। रेशे शरीर से मल को निकलने में मदद करते हैं।
  • चीज़, चॉकलेट और अण्कडें आदि कम खाना चाहिए क्योंकि इनसे कब्ज (Kabj) बढ़ सकती है।
  • मल को नरम करने के लिए आलू बुखारे या सेब का रस पीजिए।
  • अपनी आँतों को ठीक से काम करने में मदद करने के लिए कसरत कीजिए।
  • कब्ज में पैदल चलने से लाभ होता है।
  • जब आप को मल त्याग करने की इच्छा हो, शौचालय जाएं।
  • एनीमा का उपयोग करने से पहले अपने चिकित्सक की सलाह लें।

सिर में जूं होना – Head Lice in Hindi

जूं (Head Lice) तिल के आकार की एक छोटी परजीवी है जो मनुष्य के शरीर में पैदा हो जाती हैं। सामान्यत: यह बालों में पाये जाते हैं। ये बड़ी तेजी से चल सकती हैं। इस कारण बालों के बीच इन्हें खोजना कठिन हो जाता है। ये सभी उम्र तथा प्रजातियों के लोगों को संक्रमित करती हैं।

जूं और लीख क्या है – About Head Lice in Hindi

जूओं के अंडे ‘लीख’ कहलाते हैं। ये पीलापन युक्त सफेद अथवा डैंड्रफ (Dandruff) जैसे लगते हैं। जुएं बालों की डंठल पर अपने अंडों को पानी से अप्रभावित रहने वाले ‘गोंद’ से चिपका देती हैं। इन अंडों को आप गर्दन के पीछे तथा कानों के पीछे देख सकते हैं।

ये अंडे धोकर अथवा ब्रश द्वारा साफ नहीं किए जा सकते। इन्हें एक-एक करके चुनकर उठाना पड़ता है।

जूं को चिलुआ जैसे दूसरे नामों से भी बुलाते है। जूं सिर के बालों में पनपता है और चिलुआ शरीर मे पहने गये कपडों में पसीने वाले स्थानों में पैदा हो जाते हैं। दोनो का भोजन शरीर का खून होता है।

जूं तीन प्रकार की होती है – Types of Lices in Hindi

1. Pediculosis Humanus Capitis – इसका जीवनकाल करीब 40 दिनों का होता है और अपने जीवन काल में ये 400 के आस पास अंडे देती है, अर्थात प्रतिदिन 7-10 ये अंडे जिन्हें हम लीख के नाम से जानते है। ये लीख बाल से चिपक जाती है और 8 दिन में पककर पूरी जूँ बन जाती है।

2. Pediculosis Humanus – यह शरीर पर पाई जाने वाली जूँ है। इसका अंडा मानव शरीर पर न रहकर कपङे के रेशों के साथ चिपका रहता है। ऊपर से देखने पर यह बालों की जङों में घुसी हुई दिखती है। यह भी जबरदस्त खुजली का कारण बनती है। चूंकि यह कपड़ों से जुड़ी रहती है इसलिये जो लोग एक दूसरे के कपङे पहन लेते हैं उनमें ये ज्यादा होती है।

3. Pthiris Pubis –  मुख्यतया पेडू के नीचे वाले हिस्से (Pubic Area) में ये होती है। इसके अतिरिक्त ये, कांख, आंख की भौहों, पलकों आदि को भी प्रभावित कर सकती है। सिर को साफ़ न रखना, नियमित तौर पर सिर को नही धोना जूं होने के कारण होते हैं।

सिर में जूं के लक्षण – Lices Symptoms in Hindi

सिर में खुजली होना

सिर में जूं के कारण – Lices Causes in Hindi

जुएं तेजी से, एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक फैल सकती हैं। यह बेहद तेजी से चलती हैं। जुओं के फैलने के कुछ कारण निम्न हैं: 

  • हैट, स्कार्फ, कंघी, ब्रश, हेयर क्लिप अथवा बैरेट, हेयर बैंड, हेलमेट अथवा कपड़ों, का अदल-बदलकर इस्तेमाल करते हैं।
  • एक ही बिस्तर, पलंग अथवा कालीन का प्रयोग करते/करती हैं।
  • बहुत निकट रहकर खेलते हैं।
  • ऐसे अलमारी अथवा लॉकर में रखी गई, वस्तुओं का प्रयोग करते हैं, जिन में जुएं अथवा उनके अंडे मौजूद होते हैं।

सिर में जूं का इलाज – Lices Treatment in Hindi

  • सामान्य शैम्पू से बाल साफ करें। कंडीशनर का प्रयोग न करें। इसके कारण जुओं की दवा का प्रभाव समाप्त हो सकता है।
  • गर्म पानी से बाल धोकर उन्हें तौलिये से सुखा लें। इस तौलिये का दुबारा प्रयोग तब तक न करें, जब तक यह धो न लिया जाए।
  • बालों पर सफेद सिरका लगाएं – यह उस ‘गोंद’ को ढीला करने में सहायक होता है, जो ‘लीखों’ को बालों से चिपकाए हुए है।
  • बालों को महीन कंघी से साफ करें, जिससे ये अंडे निकल आएं। बालों को इधर-उधर करके कंघी करना उपयोगी हो सकता है।
  • सभी अंडों का हटाया जाना आवश्यक है। इसमें 2 अथवा 3 घंटे या अधिक समय लग सकता हैं, तथा यदि कंघी काम नहीं करती है तो आपको हाथों सं अंडे चुनने पड़ सकते हैं।
  • परिवार में जितने लोगों को जूँएं हैं सब का उपचार एक साथ हो। 
  • कपड़े बिस्तर आदि धूप में रखें या गर्म पानी में धोएं। 

टाइफाइड बुखार – Typhoid Fever (bukhar) in Hindi

टाइफाइड या आंत जवर एक गंभीर बीमारी है। इस बीमारी में रोगी को तेज बुखार के साथ उलटी और दस्त आदि की समस्या होती है। टाइफाइड (Typhoid) एक जानलेवा बीमारी मानी जाती है। आइएं जानें इसके विषय में अधिक जानकारी। 

टाइफाइड बुखार के बारे में – About Typhoid in Hindi

टाइफाइड, सल्मोनेला नामक बैक्टीरिया से होने वाला एक संक्रामक रोग है। सल्मोनेला बैक्टीरिया प्रदूषित पेय व खाद्य पदार्थों के सेवन से आंतों में जाकर वहां से रक्त में पहुंच जाता है। बच्चों को वयस्कों की तुलना में टाइफाइड होने की अधिक संभावना होती है। 

टाइफाइड बुखार कैसे फैलता है? – Typhoid Fever Transmission

  • टाइफाइड सबसे अधिक मुंह के जरिये खाने-पीने की ऐसी प्रदूषित वस्तुओं से फैलता है, जिसमें साल्मोनेला टाइफी नामक जीवाणु मौजूद हो। साल्मोनेला टाइफी बैक्टीरिया केवल मानव में छोटी आंत में पाए जाते हैं।
  • इस बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति जब खुले में मल त्याग करता है, तो ये बैक्टीरिया वहाँ से पानी में मिल सकते हैं, मक्खियों द्वारा इन्हें खाद्य पदार्थों पर छोड़ा जा सकता है और ये स्वस्थ व्यक्ति को रोग का शिकार बना देते हैं। 
  • कई व्यक्ति ऐसे होते हैं, जिनके पेट में ये बैक्टीरिया होते हैं और उन्हें हानि नहीं पहुँचाते, बल्कि बैक्टीरिया फैलाकर दूसरों को रोग का शिकार बनाते हैं। ये लोग अनजाने में ही बैक्टीरिया के वाहक बन जाते हैं।

टाइफाइड बुखार के लक्षण – Typhoid Symptoms in Hindi

  • कब्ज या दस्त होना
  • कभी-कभी शौच में खून का आना
  • बुखार शुरू में हल्का, पर धीरे-धीरे तेज होता जाता है
  • भूख कम लगना और उल्टियां आना
  • रोग की गंभीर स्थिति में बेहोशी भी आ सकती है
  • सिर-दर्द और बदन-दर्द
  • सूखी खांसी आना और पेट में दर्द

टाइफाइड बुखार के कारण – Typhoid Causes in Hindi

माना जाता है कि टाइफाइड अधिकातर गंदगी के कारण फैलता है। शौच के बाद संक्रमित व्यक्ति द्वारा हाथ ठीक से न धोना और भोजन बनाना या भोजन को छूना भी रोग फैला सकता है। कुछ अन्य कारण निम्न हैं: 

  • उन क्षेत्रों में काम करना या यात्रा करना जहां यह बीमारी है।
  • गलत जीवन-शैली के कारण शरीर के रोग प्रतिरोधक तंत्र का कमजोर होना।
  • पीने के पानी का जीवाणु से प्रदूषित होना।
  • शौच के बाद साफ-सफाई का ध्यान ना रखना। 

टाइफाइड बुखार का इलाज – Typhoid Treatment in Hindi

  • डॉक्टर के परामर्श से ब्लड टेस्ट के बाद ही डॉक्टर के परामर्श के अनुसार ही चिकित्सा कराएं।
  • टाइफाइड की दवा को बीच में न छोड़ें। बुखार में पेरासीटामोल का इस्तेमाल करें।
  • रोगी के शरीर में पानी की कमी न होने पाए, इसके लिए रोगी को पानी और अन्य तरल पदार्थ पर्याप्त मात्रा में दें। 
  • रोगी के आसपास साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें। 

डिमेंशिया (मनोभ्रंश) – Dementia in Hindi

डिमेंशिया (Dementia) व्यक्ति के मस्तिष्क को प्रभावित करने वाली बीमारी होती है। अल्जाइमर्स की बीमारी (Alziehmers Disease) और वस्क्युलर डिमेंशिया (Vascular Dementia) इसके सबसे आम प्रकार (Common Type) हैं।

डिमेंशिया क्या है – What is Dementia in Hindi

दिमाग की कोशिकाओं को न्यूरॉन्स (Neurons) कहते हैं जो दिमाग को संचालित करती हैं। डिमेंशिया एक ऐसा मानसिक रोग है जिसमें धीरे धीरे दिमाग के न्यूरॉन्स नष्ट हो जाते हैं।

डिमेंशिया के शिकार लोगों के दिमाग में प्रोटीन का जमाव होने लगता है। यह दिमाग के स्मरणशक्ति में फैल जाता है जिससे दिमाग के कुछ हिस्सों के न्यूरॉन मरने लगते हैं। इससे याददाश्त के लिए जरूरी महत्त्वपूर्ण न्यूरो ट्रांसमीटर (Neuro Transmitter) मसलन एसेटिलकोलाइन (Asetilkolin) का स्तर कम हो जाता है।

डिमेंशिया के कारण होने वाली समस्या – Problem Due to Dementia in Hindi

इन बीमारियों (Dimagi Bimari) में रोगी की याददाश्त और सोचने की शक्ति धीरे धीरे कम होती जाती है। किसी के लिए भी डिमेंशिया बेहद परेशानी वाली बीमारी है। धीरे-धीरे यह व्यक्ति के रोजमर्रा के क्रियाकलापों को भी कठिन बना देती है। डिमेंशिया के रोगी धीरे धीरे पूरी तरह से दूसरों पर निर्भर होते जाते हैं|

डिमेंशिया से बचाव – Protection from Dementia in Hindi

कुछ क्रियाकलापों और जीवनशैली में तब्दीली लाकर न सिर्फ इस बीमारी के होने वाले खतरे को कम किया जा सकता है, बल्कि हो जाने के बाद इसके बढ़ने की गति को धीमा भी किया जा सकता हैं।

डिमेंशिया का कोई इलाज उपलब्ध नहीं है। डिमेंशिया की समस्याएं अचानक, रातों-रात नहीं होतीं. ये धीरे धीरे बढ़ती हैं. शुरू में ये छोटी, मामूली बातों में दिखाई देती हैं जिस कारण परिवार वाले इनको नज़रअंदाज़ कर देते हैं। यदि परिवार वाले सतर्क रहें तो पहचान पायेंगे कि क्या भूलना सामान्य किस्म का है या गंभीर समस्या का सूचक हो सकता है। वे फिर डॉक्टर से सलाह से रोगी का उचित इलाज करवायें। सिर में कई बार चोट लग जाने से इस बीमारी के होने की आशंका बढ़ जाती है। 

डिमेंशिया के लक्षण – Dementia Symptoms in Hindi

  • अपने आप में गुमसुम रहना, मेल-जोल बंद कर देना, चुप्पी साधना
  • कपडे उलटे पहनना, साफ़-सुथरा न रह पाना
  • किसी बात को या प्रश्न को दोहराना, जिद्द करना, तर्क न समझ पाना
  • किसी वस्तु का चित्र देखकर यह न समझ पाना कि यह क्या है
  • कुछ काम शुरू करना, फिर भूल जाना कि क्या करना चाहते थे, और बहुत कोशिश के बाद भी याद न कर पाना
  • चीज़ों को गलत, अनुचित जगह पर रख छोडना (जैसे कि घडी को, या ऑफिस फाइल को फ्रिज में रख देना)
  • छोटी छोटी समस्याओं को भी न सुलझा पाना
  • छोटी-छोटी बात पर, या बिना कारण ही बौखला जाना, चिल्लाना, रोना, इत्यादि
  • डिमेंशिया से प्रभावित व्यक्ति में, रोग के बढ़ने के साथ ज्यादा और अधिक गंभीर लक्षण नज़र आते हैं। (याद रखें कि हर व्यक्ति में अलग अलग लक्षण नज़र आते हैं)
  • नंबर जोड़ने और घटाने में दिक्कत, गिनती करने में दिक्कत
  • बोलते या लिखते हुए गलत शब्द का प्रयोग करना, या शब्दों के अर्थ न समझ पाना
  • बड़ी रकम को फालतू की स्कीम में डाल देना, पैसे से सम्बंधित अजीब निर्णय लेना, लापरवाही या गैरजिम्मेदारी दिखाना
  • यह भूल जाना कि तारीख क्या है, कौनसा महीना है, साल कौनसा है, व्यक्ति किस घर में हैं, किस शहर में हैं, किस देश में

डिमेंशिया के कारण – Dementia Causes in Hindi

​डिमेंशिया कई कारणों से हो सकता है लेकिन इसका मुख्य कारण आनुवांशिक ही माना जाता है। साथ ही बढ़ती उम्र में इस बीमारी से पीड़ित होने की संभावना भी बढ़ जाती है। इसके अहम कारक निम्न हैं: 

  • आनुवांशिक: अगर परिवार में कोई भी इस बीमारी से पीड़ित हो, तो खतरे की संभावना ब़ढ जाती है
  • बढ़ती उम्र में इस बीमारी के खतरे बढ़ जाते हैं। 
  • उच्च रक्तचाप से पीड़ित रोगियों को डिमेंशिया के प्रति सचेत रहना चाहिए। 
  • मधुमेह और मोटापे को भी इसका मुख्य कारण माना जाता है। 
  • ज़्यादा जंक फूड खाने से और आधुनिक जीवनशैली से शरीर से जरूरी पोषक तत्व नहीं मिल पाते जिस कारण डिमेंशिया (Dementia) होने की संभावना बढ़ जाती है। 

डिमेंशिया का इलाज – Dementia Treatment in Hindi

डिमेंशिया से बचाव और इसका इलाज दोनों ही संभव है। जरूरी है तो केवल सही समय पर इसकी जानकारी होना। डिमेंशिया के दौरान निम्न बातों का ध्यान रखना जरूरी है: 

  • डिमेंशिया का व्यक्ति और परिवार पर क्या असर पड़ेगा, यह समझें और स्वीकारें।
  • देखभाल कई वर्षों तक चल सकती है, इसलिए यह जानना जरूरी है कि रोगी की देखभाल के अलावा और क्या क्या जिम्मेदारियां निभानी हैं और देखभाल के लिए समय और पैसे का इंतजाम किस प्रकार करेंगे।
  • इसलिए अपनी जिंदगी में उसी प्रकार से बदलाव लाएं ताकि रोगी की देखभाल के साथ साथ आप अपनी अन्य जिम्मेदारियां भी निभा सकें। इसके लिए जो भी सीखना है, वह सीखें, और खुशी खुशी अपने कर्तव्य का निर्वाह करें। 

खून की कमी (एनीमिया) – Anemia in Hindi

खून की कमी (एनीमिया) क्या है – About Anemia in Hindi

खून में आयरन की कमी से हीमोग्लोबिन की कमी हो जाने को एनीमिया अर्थात रक्ताल्पता का रोग कहा जाता है। आयरन हमारे शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं का निर्माण करता है। ये कोशिकाएं ही शरीर में हीमोग्लोबिन बनाने का काम करती हैं। इसलिए आयरन की कमी से शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी हो जाती है और हीमोग्लोबिन कम होने से शरीर में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है क्योंकि हीमोग्लोबिन ही फेफड़ों से ऑक्सीजन लेकर रक्त में ऑक्सीजन पहुंचाता है।

बीमारियों का कारण – Khoon ki kami se Bimari

एनीमिया (Anemia) कोई बीमारी नहीं है, लेकिन यह कई बीमारियों की वजह जरूर बन सकता है। जीवनशैली के साथ आहार संबंधी आदतों में होने वाला बदलाव इस समस्या के मुख्य कारण के रूप में सामने आ रहा है।  बढ़ते बच्चों, स्तनपान कराने वाली महिलाओं व बीमार व्यक्तियों में एनीमिया का खतरा ज्यादा होता है। विश्व की लगभग 60 प्रतिशत महिलाएं, और हमारे देश की लगभग 90 प्रतिशत महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं।

हीमोग्लोबिन का स्तर (Normal Range for Hemoglobin)

स्वस्थ पुरूष के शरीर में 13-16 व महिला में 12-14 मिलिग्राम प्रति डेसिलीटर हीमोग्लोबिन होना चाहिए। 

खून की कमी (एनीमिया) के लक्षण – Anemia Symptoms in Hindi

  • आंखें पीली हो जाना
  • कमजोरी और थकावट महसूस होना
  • चक्कर आना
  • छाती में दर्द होना एवं सीने में ऐठन होना
  • त्वचा व नाखूनों का पीला होना
  • माइल्ड (Mild) यानी हल्के एनीमिया में लक्षण कम नज़र आते हैं, लंबे समय से हुए एनीमिया के कई लक्षण आसानी से देखे जा सकते हैं
  • लेट के उठने पर आँखों के सामने अन्धेरा छा जाना
  • सांस फूलना
  • सिर दर्द रहना
  • हाथों और पैरों का ठंडा होना
  • हृदय की धड़कन तेज या असामान्य होना

खून की कमी (एनीमिया) के कारण – Anemia Causes in Hindi

एनीमिया का सबसे प्रमुख कारण पौष्टिक खाने की कमी को ही माना जाता है। इसके अलावा कुछ बीमारियों के कारण भी शरीर में खून की कमी हो जाती है। निम्न कुछ ऐसी ही परिस्थितियां हैं जिनमें एनीमिया हो सकती है: ​​

  • किडनी कैंसर: किडनी से इरायथ्रोपोयॅटीन (Erythropoietin) नाम के हारमोन का उत्पादन होता है जो अस्थिमज्जा (Bone Marrow) को रेड-ब्लड सेल के निर्माण में मदद करता है, जिन लोगों को किडनी का कैंसर होता है उनके शरीर मेँ इरायथ्रोपोयॅटीन (Erythropoieti) हारमोन का निर्माण नहीं होता है और इसकी वजह से रेड-ब्लड सेल्स का बनना भी कम हो जाता है जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति को एनीमिया हो जाता है ।
  • अल्पाहार या कुपोषण: रेड-ब्लड सेल्स के निर्माण के लिए कई प्रकार के विटामिन व मिनरल्स की जरूरत होती है, इनकी कमी से रेड- ब्लड सेल्स का निर्माण भी कम हो जाता है और फलस्वरूप हीमोग्लोबिन भी कम बनता है और अंततः व्यक्ति एनीमिया का शिकार बन सकता है। कुपोषण महिलाओं में आम समस्या है और गर्भवती महिलाओं में कुपोषण की समस्या के कारण एनीमिया की परेशानी हो सकती है।
  • हीमोग्लोबिन के जीन में बदलाव: इस प्रकार के एनीमिया को सीकल सेल एनीमिया (Sickle Cell Anaemia) कहते हैं । असामान्य हीमोग्लोबिन के कारण रेड ब्लड सेल्स सीकल यानी हंसिये के आकार के हो जाते हैं, सीकल सेल एनीमिया के कई प्रकार होते हैं जिनका असर अलग-अलग स्तर पर अलग-अलग तरीके से होता है।
  • थैलैसीमीया: थैलैसीमीया आनुवांशिक एनीमिया होता है,इस प्रकार के एनीमिया में हीमोग्लोबिन अपेक्षित मात्रा में बनने के बजाय कम या ज्यादा बनने लगता है।
  • वायरल इंफेक्शन, केमोथेरपी: वायरल इंफेक्शन, केमोथेरपी और कुछ दवाएं लेने से भी अस्थिमज्जा (Bone Marrow ) बुरी तरह से प्रभावित होती है इससे ब्लड सेल्स का निर्माण बिल्कुल कम हो जाता है जिसके परिणामस्वरूप एनीमिया होने की संभावनाएं ज्यादा होती हैं, इस प्रकार के एनीमिया को अप्लास्टिक एनीमिया (Aplastic Anaemia) कहते हैं।
  • हीमोलायटिक एनीमिया (Hemolytic Anaemia): सामान्य रेड-ब्लड सेल्स का आकार इसके ठीक से काम करने के लिए काफी अहम होता है , कई कारणों से रेड-ब्लड सेल नष्ट हो जाते हैं जिस अवस्था को हीमोलायटिीस कहते हैं, ऐसी स्थिति में रेड-ब्लड सेल्स ठीक तरीके से काम नहीं कर पाते हैं, हीमोलायटिस की स्थिति कई कारणों से पैदा हो सकती हैं, कारण आनुवांशिक और रेड-ब्लड सेल्स का अति निर्माण हो सकता है इसके अलावा कई अवस्था में सामान्य रेड-ब्लड सेल्स में भी हीमोलायटिक एनीमिया हो सकता है।
  • विटामीन बी-12 की कमी: शरीर में विटामीन बी-12 की कमी से परनीसीयस एनीमिया होने की संभावना होती है। परनीसीयस एनीमिया ज़्यादातर शुद्ध शाकाहारी व्यक्तियों को और लंबे व़क्त से शराब का सेवन करने वालों को होता है। 
  • रक्तस्राव से होने वाला एनीमिया: माहवारी के दिनों में अत्यधिक स्राव, किसी चोट या घाव से स्राव, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल अल्सर, कोलन कैंसर इत्यादि में धीरे-धीरे ख़ून लगातार रिसने से एनीमिया हो सकता है। 
  • लंबे समय से बीमार होने पर: किसी भी प्रकार की दीर्घकालिक बीमारी से एनीमिया हो सकता है।  

एनीमिया के कुछ अन्य कारण निम्न हैं: 

  • दवाओं का दुष्प्रभाव
  • थायरॉयड की समस्या
  • कैंसर
  • लीवर की बीमारियां
  • वंशानुगत समस्याएं
  • एड्स
  • टीबी (Tuberculosis)
  • किडनी / गुर्दे की अनियमितता की समस्या
  • किडनी/ गुर्दे फेल हो जाने के कारण (Acute Renal Failure Or Chronic Renal Failure)
  • नियमित रक्तस्राव व अन्य दूसरे कई कारण भी एनीमिया के कारणों में उभर कर सामने आ सकते हैं

खून की कमी का इलाज – Anemia Treatment in Hindi

एनीमिया से बचाव का सबसे बेहतरीन उपाय है पौष्टिक आहार लेना। इसके साथ ही निम्न बिंदूओं पर ध्यान देकर भी इस बीमारी से बचा जा सकता है: 

  • एनीमिया ज्यादातर पौष्टिक आहार लेने से ठीक हो जाता है, लेकिन कुछ प्रकार के एनीमिया में अलग-अलग तरह से उपचार कराने पड़ते हैं। ऐसे में सबसे ज्यादा जरूरी है डॉक्टरी परामर्श।
  • साधारण तौर पर युवाओं में एनीमिया का उपचार बहुत आसानी से हो जाता है, जबकि वयस्क में एनीमिया की शिकायत जल्दी से दूर नहीं हो पाती है।
  • खून की कमी दूर करने के लिए सबसे पहले खाने में हरी सब्जियां (पालक, मेथी), फल व सलाद की मात्रा बढ़ानी चाहिए।
  • चुकंदर आयरन का अच्छा स्त्रोत है। इसको रोज खाने में सलाद या सब्जी के तौर पर शामिल करने से शरीर में खून की कमी नहीं होती।
  • हरी पत्तेदार सब्जी जैसे पालक, ब्रोकोली, पत्तागोभी, गोभी, शलजम और शकरकंद जैसी सब्जियां सेहत के लिए बहुत अच्छी होती हैं। इनके सेवन से वजन कम होने के साथ खून भी बढ़ता है और पेट भी ठीक रहता है।
  • सूखे मेवे जैसे खजूर, बादाम और किशमिश का खूब प्रयोग करना चाहिए। इसमें आयरन की पर्याप्त मात्रा होती है।
  • फल जैसे खजूर, तरबूज, सेब, अंगूर, किशमिश और अनार खाने से खून बढ़ता है। अनार खाना एनीमिया (Fruits in Anemia) में काफी फायदा करता है।
  • आयरन की गोलियां या आयरन सुक्रोच के इंजेक्शन, विटामिन बी-12 की गोली या इंजेक्शन डॉक्टरी सलाह से लें।

आत्मविमोह – Narcissism in Hindi

आत्मविमोह क्या है – What is Narcissism in Hindi

आत्मविमोह मस्तिष्क के विकास के दौरान होने वाला एक मानसिक रोग है जो मस्तिष्क के कई भागों को प्रभावित करता है। जिन बच्चों में यह रोग होता है उनका विकास अन्य बच्चों की अपेक्षा असामान्य होता है।

आत्मविमोह के सामान्य लक्षण – Symptoms of Narcissism in Hindi

आत्मविमोह के लक्षण बच्चे के तीन साल की उम्र होने से पहले ही दिखने शुरू हो जाते है। ऑटिस्टिक बच्चे सामाजिक गतिविधियों के प्रति उदासीन होते है, वो लोगों की ओर ना देखते हैं, ना मुस्कुराते हैं और ज्यादातर अपना नाम पुकारे जाने पर भी सामान्य: कोई प्रतिक्रिया नहीं करते हैं।

हाल की एक समीक्षा के अनुसार प्रति 1000 लोगों के पीछे दो मामले आत्मविमोह के होते हैं। पिछले कुछ दशकों में आत्मविमोह के मामलों में अप्रत्याशित रूप से वृद्धि हुई है जिसका एक कारण चिकित्सीय निदान के क्षेत्र मे हुआ विकास है लेकिन क्या असल में ये मामले बढ़े है यह अपने आप में एक प्रश्न है।

आत्मविमोह के कारण – Narcissism Causes in Hindi

अनुशोधों के अनुसार आत्मविमोह होने के कई कारण हो सकते हैं जैसे-

  • मस्तिष्क की गतिविधियों में असामान्यता होना
  • मस्तिष्क के रसायनों में असामान्यता
  • आनुवंशिक आधार

परिणाम बताते हैं कि कम अंतराल पर हुई गर्भावस्थाओं से जन्म लेने वाले बच्चों में आत्मविमोह विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है

आत्मविमोह का इलाज – Narcissism Treatment in Hindi

शुरुआती संज्ञानात्मक (Cognitive) या व्यवहारी हस्तक्षेप, ऑटिज़्म से प्रभावित बच्चों के विकास में बहुत महत्वपूर्ण होता है। ऑटिज़्म को एक बीमारी की बजाय एक स्थिति के नजरिये से देखना चाहिए।

आत्मविमोह बच्चों के साथ ऐसा व्यवहार करना चाहिए – Treatment of a Narcissism ​Patient​ in Hindi 

  • खेल-खेल में नए शब्दों का प्रयोग करें
  • खिलौनों के साथ खेलने का सही तरीका दिखाएँ
  • बारी-बारी से खेलने की आदत डालें
  • धीरे-धीरे खेल में लोगो की संख्या को बढ़ते जायें
  • छोटे-छोटे वाक्यों में बात करें
  • साधारण भाषा का प्रयोग करें
  • रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाले शब्दो को जोड़ कर बोलना सिखांए
  • पहले समझना तथा फिर बोलना सिखांए
  • यदि बच्चा बोल पा रहा है तो उसे शाबाशी दें तथा बार-बार बोलने के लिए प्रेरित करें
  • बच्चे को अपनी जरूरतों को बोलने का मौका दें
  • यदि बच्चा बिल्कुल बोल नही पाए तो उसे तस्वीर की तरफ़ इशारा करके अपनी जरूरतों के बारे में बोलना सिखाएं
  • बच्चे को घर के अलावा अन्य लोगों से नियमित रूप से मिलने का मौका दें
  • बच्चे को तनाव मुक्त स्थानों जैसे पार्क आदि में ले कर जायें
  • अन्य लोगों को बच्चे से बात करने के लिए प्रेरित करें
  • बच्चे के साथ धीरे-धीरे कम समय से बढ़ाते हुए अधिक समय के लिए नज़र मिला कर बात करने की कोशिश करे
  • तथा उसके किसी भी प्रयत्न को प्रोत्साहित करना न भूलें
  • यदि बच्चा कोई एक व्यवहार बार-बार करता है तो उसे रोकने के लिए उसे कुछ ऐसी गतिविधियों में लगाएं जो उसे व्यस्त रखें ताकि वे व्यवहार दोहरा न सके
  • गलत व्यवहार दोहराने पर बच्चे को कुछ ऐसा काम करवांए जो उसे पसंद नही है
  • यदि बच्चा कुछ देर गलत व्यवहार न करे तो उसे तुरंत प्रोत्साहित करें
  • प्रोत्साहन के लिए रंग-बिरंगी, चमकीली तथा ध्यान खीचनें वाली चीजों का इस्तेमाल करें
  • बच्चे को अपनी शक्ति को इस्तेमाल करने के लिए सही मार्ग दिखाएँ जैसे की उसे तेज व्यायाम, दौड़, तथा बाहरी खेलों में लगाएं
  • यदि परेशानी अधिक हो तो मनोचिकित्सक के द्वारा दी गई दवा का उपयोग भी किया जा सकता है

चिकनगुनिया – Chikungunya in Hindi

चिकनगुनिया क्या है – What is Chikungunya in Hindi

चिकनगुनिया बुखार (Chikungunya) एक वायरस बुखार है जो एडीज मच्छर एइजिप्टी के काटने के कारण होता है। चिकनगुनिया और डेंगू के लक्षण लगभग एक समान होते हैं।​ इस बुखार का नाम चिकनगुनिया स्वाहिली भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ है ”ऐसा जो मुड़ जाता है” और यह रोग से होने वाले जोड़ों के दर्द के लक्षणों के परिणामस्वरूप रोगी के झुके हुए शरीर को देखते हुए प्रचलित हुआ है।

चिकनगुनिया के लक्षण – Symptoms of Chikungunya in Hindi

चिकनगुनिया में जोड़ों के दर्द के साथ बुखार आता है और त्वचा खुश्क हो जाती है। चिकनगुनिया सीधे मनुष्य से मनुष्य में नहीं फैलता है। यह बुखार एक संक्रमित व्यक्ति को एडीज मच्छर के काटने के बाद स्वस्थ व्यक्ति को काटने से फैलता है। चिकनगुनिया से पीड़ित गर्भवती महिला को अपने बच्चे को रोग देने का जोखिम होता है।

चिकनगुनिया के विषय में अधिक जानकारी के लिए नीचे दिए गए लिंक्स पर क्लिक करें: 

  • उल्‍टी होना
  • एक से तीन दिन तक बुखार के साथ जोड़ों में दर्द और सूजन होना
  • कंपकपी और ठंड के साथ बुखार का अचानक बढ़ना
  • सरदर्द होना

चिकनगुनिया के कारण – Chikungunya Causes in Hindi

चिकनगुनिया मुख्य रूप से मच्छरों के काटने के कारण ही होता है। इसके सामान्य कारण निम्न हैं:

  • मच्छरों का पनपना।  
  • रहने के स्थान के आसपास गंदगी होना। 
  • पानी का जमाव। 

चिकनगुनिया का इलाज – Chikungunya Treatment in Hindi

चिकनगुनिया होने पर डॉक्टर की सलाह लेना सबसे जरूरी है। साथ ही चिकनगुनिया से पीड़ित रोगी को निम्न उपाय अपनाने चाहिए: 

  • अधिक से अधिक पानी पीएं, हो सके तो गुनगुना पानी पीएं।
  • ज्यादा से ज्यादा आराम करें।
  • चिकनगुनिया के दौरान जोड़ों में बहुत दर्द होता है जिसके लिए डाॅक्टर की सलाह पर ही दर्द निवारक (Pain Killer) लें।
  • दूध से बने उत्पाद, दूध-दही या अन्य चीजों का सेवन करें।
  • रोगी को नीम के पत्तों को पीस कर उसका रस निकालकर दें।
  • रोगी के कपड़ों एवं उसके बिस्तर की साफ-सफाई पर खास ध्यान दें।
  • करेला व पपीता और गिलोय के पत्तों का रस काफी फायदेमंद माना जाता है। 
  • नारियल पानी पीने से शरीर में होने वाली पानी की कमी दूर होती है और लीवर को आराम मिलता है। 
  • ऐस्प्रिन बुखार होने पर कभी ना लें, इससे काफी समस्या हो सकती है। 

चिकनगुनिया में बच्चों की देखभाल – Chikungunya in Children​in Hindi

  • बच्चों का खास ख्याल रखें। 
  • बच्चे नाजुक होते हैं और उनका इम्यून सिस्टम कमजोर होता है इसलिए बीमारी उन्हें जल्दी पकड़ लेती है। ऐसे में उनकी बीमारी को नजरअंदाज न करें।
  • बच्चे खुले में ज्यादा रहते हैं इसलिए इन्फेक्शन होने और मच्छरों से काटे जाने का खतरा उनमें ज्यादा होता है।
  • बच्चों घर से बाहर पूरे कपड़े पहनाकर भेजें। मच्छरों के मौसम में बच्चों को निकर व टी – शर्ट न पहनाएं। रात में मच्छर भगाने की क्रीम लगाएं।
  • अगर बच्चा बहुत ज्यादा रो रहा हो, लगातार सोए जा रहा हो, बेचैन हो, उसे तेज बुखार हो, शरीर पर रैशेज हों, उलटी हो या इनमें से कोई भी लक्षण हो तो फौरन डॉक्टर को दिखाएं।
  • आमतौर पर छोटे बच्चों को बुखार होने पर उनके हाथ – पांव तो ठंडे रहते हैं लेकिन माथा और पेट गर्म रहते हैं इसलिए उनके पेट को छूकर और रेक्टल टेम्प्रेचर लेकर उनका बुखार चेक किया जाता है। बगल से तापमान लेना सही तरीका नहीं है, खासकर बच्चों में। अगर बगल से तापमान लेना ही है तो जो रीडिंग आए, उसमें 1 डिग्री जोड़ दें। उसे ही सही रीडिंग माना जाएगा।

पेट में अफारा – Afara in Stomach in Hindi

अफारा क्या है – What is Afara

खान-पान में अनियमितता और मैदा या सुपरफाइन आटे से बने खाद्य प्रदार्थ खाने के कारण हमारे पेट में बहुत गैस पैदा होने लगती है। अगर यह गैस स्वाभाविक तरीके से पेट से बाहर निकल जाये तो तकलीफ नहीं होती मगर जब यह गैस नही निकलती है तो पेट फूल जाता है और अफारे (Gas) की स्थिति बन जाती है, तब बड़ी तकलीफ होती है।

अफारा के लक्षण – Afara Symptoms in Hindi

  • अफारा जैसा महसूस होना

  • खाना खाने के बाद पेट ज्यादा भारी लगना

  • छाती में जलन होना

  • जी मिचलाना

  • डकारें आना

  • पेट में दर्द होना

  • पेट में भारीपन महसूस होता है

  • पेट से गैस पास होना

अफारा के कारण – Afara Causes in Hindi

  • खानपान : सुपरफाइन आटे (Packed Aata) की रोटी आसानी से नहीं पचती। यह वायु पैदा करती हैं।

  • शराब पीने से भी पेट में गैस बनती है।

  • मिर्च-मसाला या तली-भुनी चीजें ज्यादा खाने से।

  • फलियां (Beans), राजमा, छोले, लोबिया, मोठ, उड़द की दाल, फास्ट फूड, ब्रेड और किसी-किसी को दूध या भूख से ज्यादा खाने से।

  • खाने के साथ कोल्ड ड्रिंक लेने से। इसमें गैसीय तत्व होते हैं।

  • तला या बासी खाना।

  • तनाव, देर से सोना और सुबह देर से जागना जैसी खराब जीवनशैली आदतों के कारण भी समस्या हो सकती है।

  • भूखे रहने से, खाली पेट भी गैस (Pet me Gas) बनने का प्रमुख कारण है। समय असमय खाना खाने से भी गैस संबंधी समस्या हो सकती है।

  • लीवर में सूजन, गॉल ब्लेडर में स्टोन, फैटी लीवर, अल्सर जैसे रोगों में भी पेट में गैस की समस्या होती है।

  • मोटापे, डायबीटीज, अस्थमा आदि के रोगियों को अकसर गैस की समस्या देखने को मिलती है।

  • बच्चों के पेट में कीड़ों की वजह से अफारा हो सकता है।

  • अक्सर पेनकिलर खाने से भी अफारा हो सकता है।

  • कब्ज, अतिसार, खाना न पचने व उलटी की वजह से भी अफारा या पेट में गैस की समस्या हो सकती है।

अफारा का इलाज – Afaara Treatment in Hindi

  • पेट में गैस की समस्या से निजात पाने का सबसे बढ़िया तरीका है खान-पान सही रखना। अगर खान-पान सही हो तो इस बीमारी से कोई परेशानी नहीं होती है। इसके साथ ही निम्न बातों का भी ध्यान रखना चाहिए :

  • भोजन पचेगा, पेट साफ रहेगा तो गैस कम बनेगी।

  • सुपरफाइन आटे की रोटी आसानी से नहीं पचती, वायु पैदा करती हैं। अतः मोटे चोकर युक्त आटे की रोटी खाएं। यह जल्दी पचेगी और वायु पैदा नहीं होगी और अफारा जैसी तकलीफें नहीं होंगी।

  • हरे साग जैसे बथुआ, पालक, सरसों का साग खाएं। खीरा, ककड़ी, गाजर, चुकंदर भी इस रोग को शांत रखते हैं। इन्हें कच्चा खाना चाहिये।

  • नारियल का पानी दिन में तीन बार पियें। इससे सारा कष्ट मिट जाएगा।

सफर में उल्टी आना (मोशन सिकनेस) – Motion Sickness (Sea Sickness) in Hindi

उबकाई आना उल्टी होने का एहसास मात्र है। कुछ लोगों को मितली ज्यादा आती है। विशेषकर यात्रा के समय कुछ लोगों को उबकाई की समस्या होती है।

इसे मोशन सिक्नेस (Motion Sickness) भी कहते हैं। यह गाडी से यात्रा के दौरान या या नाव से यात्रा के दौरान (Sea Sickness) विशेष रूप से महसूस किया जाता है।

सफर में उल्टी आना (मोशन सिकनेस) के लक्षण – Motion Sickness Symptoms in Hindi

  • दिल की धड़कन बढ़ जाती है

  • पसीना आने लगता है

  • पेट में गड़बड़ी का एहसास होने लगता है

सफर में उल्टी आना (मोशन सिकनेस) के कारण – Motion Sickness Causes in Hindi

  • यात्रा के दौरान मितली आना बेहद सामान्य बात है लेकिन कई वजहों से यह अगर लगातार आए तो एक समस्या हो सकती है। मितली निम्न कारणों से भी आती है:

  • ऐंटी बायोटिक (Anti Biotic) दवाईयों के कारण अक्सर पेट में गड़बड़ी हो जाती है जो मितली या उल्टी का कारण बन जाता है।

  • कुछ लोगों को यात्रा के दौरान मितली, उल्टी का अनुभव होता है। इसके लिये इसकी दवॉंए आधा घंटा पूर्व लेकर ही चले।

  • बदहजमी से, अम्लता (Acidity), शराब आदि से भी मितली की समस्या हो सकती है।

  • गर्भावस्था में पहले तिमाही में मितली या उल्टी की समस्या (nausea during pregnancy) होती है। यह अपने आप रुक जाती है। मितली और उल्टी की समस्या गर्भधारण के समय शरीर में हार्मोनल बदलाव के कारण होता है। शरीर में विटामिन बी6 की कमी से भी गर्भवती महिला को उल्टी होने की समस्या हो सकती है।

  • फूड एलर्जी और फूड असहिष्णुता (Food Intolerance)

  • माइग्रेन में सिर के भीतर किसी भी प्रकार के दबाव से सेरीब्रो-स्पाइनल फ्लूइड (Cerebro-Spinal Fluid) प्रभावित होता है जिसके कारण मितली या उल्टी की समस्या उत्पन्न होती है।

  • पित्ताशय (Gall Bladder) और पाचक ग्रंथि (Pancreas) में सूजन होने पर पेट के ऊपरी भाग में दर्द होता है और मितली और उल्टी होने लगती है।

  • कभी कभी ऍक्सिडेंट या गंदगी बदबू के कारण भी मितली आ सकती है।

  • तनाव, भय और बेचैनी के कारण शरीर की क्रिया में असंतुलन पैदा हो जाता है, जो पेट में गड़बड़ी का कारण बन जाता है। जिसके फलस्वरूप मितली, उल्टी, दस्त, कब्ज आदि समस्याएं होने लगती हैं।

सफर में उल्टी आना (मोशन सिकनेस) का इलाज – Motion Sickness Treatment in Hindi

  • यात्रा के दौरान मितली से बचने का सबसे उपयोगी तरीका होता है थोड़ा-थोड़ा खाना खायें। इसके अलावा कुछ अन्य उपाय निम्न है:

  • मितली आने पर क्या करें –

  • गर्भवती महिलायें को जिन महक वाली वाले चीजों से मतली हो रही हैं उनको न खायें।

  • थोड़े-थोड़े मात्रा में खायें।

  • दो मील के बीच में ठंडा पेय, जल पीयें।

  • उलटी करने का प्रयास करें। उलटी करने पर आराम मिलेगा होगा ।

  • आप जहाँ भी हो ताजा हवा आनी चाहिए।

  • ढीला-ढाला कपड़ा पहने।

  • ज़रूरत से ज़्यादा पानी नहीं पीना चाहिए।

  • अगर स्थिति गंभिर हो जाय तो डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।