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गले में खराश – Itchy Throat in Hindi

मौसम बदलते ही गले में खराश होना आम बात है। सामान्य शब्दों में गले में खराश, गले का संक्रमण (Infection) है। आमतौर पर गले का संक्रमण (Infection) वायरस या बैक्टीरिया के कारण होता है।

लेकिन ज्यादा गले की खराश (Sore Throat) वायरस के कारण होती है। यह कुछ समय बाद अपने आप ठीक हो जाता है लेकिन यह जितने दिन रहता है काफी कष्ट देता है। 

गले में खराश के लक्षण – Gale mein kharash Symptoms in Hindi

  • 100.5 ड्रिगी F या 38 ड्रिगी सेल्सियस से अधिक बुख़ार होना
  • गर्दन में सूजन होना
  • गले में दर्द होना
  • निगलने में कठिनाई होना
  • पेट में दर्द होना
  • भूख न लगना होना
  • मितली या उलटी होना
  • शरीर में पीड़ा होना
  • सांस लेने में कठिनाई होना

गले में खराश के कारण – Gale mein kharash ke karan in Hindi

  • बदलता मौसम में अकसर खराश की समस्या का सामना करना पड़ता है। 
  • कभी कभी खाने पीने की चीज़ों के विपरीत प्रभाव के कारण भी गले में संक्रमण हो सकता है।
  • इसके अलावा गले में खराश की समस्या अनुवांशिक भी हो सकती है।
  • ठंडे, खट्टे, एवं तले हुए खाद्य पदार्थों को खाने के कारण भी गले में सक्रमण हो सकता है।

गले में खराश का इलाज – Gale mein kharash ka Treatment in Hindi

  • नमक के गुनगुने पानी से गरारे करें। इससे गले में आराम मिलेगा।
  • अदरक, इलायची और काली मिर्च वाली चाय गले की खराश (Sore Throat) में आराम पहुंचाती है।
  • कम मसाले वाला भोजन लें।
  • फ्रिज का ठंडा पानी न पिएं, न ही अन्य ठंडी चीजें खाएं। 

बुखार – Fever in Hindi

बुखार आना एक बेहद आम बीमारी होती है। विज्ञान के अनुसार यह बुखार रोग नहीं बल्कि रोग का लक्षण होता है। जानिएं बुखार के बारें में विस्तार से: 

बुखार – What is Fever in Hindi

मनुष्य के शरीर का सामान्य तापमान 37°सेल्सियस या 98.6° फैरेनहाइट होता है। जब शरीर का तापमान इस से ऊपर हो जाता है तो यह स्थिति बुखार कहलाती है।

बुखार अपने आप में कोई रोग नहीं है बल्कि यह सम्भवतः किसी रोग का लक्षण है। बुखार (Bukhar) वास्तव में शरीर में किसी संक्रमण के प्रति शरीर की प्रतिक्रिया है। बुखार का स्तर संक्रमण की गंभीरता के बारे में बताता है।

बुखार के कारण – Bukhar Causes in Hindi

बुखार के कारण कई हो सकते है: 

  • श्वसन संस्थान वाले बुखार जैसे की जुकाम, फ्लू, गले की सूजन, श्वासनली शोथ, न्यूमोनिया, टी.बी. आदि।
  • त्वचा के संक्रमण (Infection) से होने वाले बुखार जैसे की जख्म में पीप होना, फोड़े या दाने वाले बुखार।
  • मच्छर या पिस्सू से होने वाले बुखार जैसे की मलेरिया (Malaria Fever), फायलेरिया (Flaria), डेंगू (Dengue), चिकुनगुन्या (Chickengunia), मस्तिष्क ज्वर (Meningitis), प्लेग (Plague), आदि। इन सभी बुखारों में पहले कंपकंपी होती है।
  • पाचन संस्थान के बुखार जैसे दस्त या पेचिश, पीलीया, टायफॉईड आदि। पेचिश में खून और बलगम गिरता है। टायफाईड खून के जॉंच से ही पता चलता है।
  • प्रजनन और मूत्र संस्थान के बुखार – इसमें पेशाब के समय जलन होती है।
  • अन्य संक्रामक बुखार जैसे की ब्रुसेलॉसीस, एड्स, तपेदिक के कुछ प्रकार, जोड़ों का बुखार। असंक्रामक बुखारों में जैसे लू लगना और ऍलर्जी से होने वाले बुखार।

बुखार का इलाज – Fever Treatment in Hindi

बुखार आने पर रोगी के शरीर का तापमान देखना चाहिए और अगर तापमान अधिक हो तो डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए। बुखार (Bukhar) आने के दौरान रोगी को निम्न सामान्य उपचार भी दिया जा सकता है: 

  • रोगी को खूब सारा स्वच्छ एवं उबला हुआ पानी पिलाएं, शरीर को पर्याप्त कैलोरी देने के लिए ग्लूकोज, फलों का रस आदि दें।
  • आसानी से पचने वाला खाना जैसे चावल की कांजी, साबूदाने की खीर या खिचड़ी, जौ का पानी आदि देना चाहिये।
  • रोगी को अच्छे हवादार कमरे में रखना चाहिये।
  • स्वच्छ एवं मुलायम वस्त्र पहनाएं। 
  • यदि ज्वर 39.5 डिग्री से. या 103.0 फैरेनहाइट से अधिक हो या फिर 48 घंटों से अधिक समय हो गया हो तो डॉक्टर से परामर्श लें।

सर्दी जुकाम – Common Cold in Hindi

सर्दी जुकाम के बारे में – Common Cold in Hindi

जुकाम विषाणुओं (वायरस) द्वारा फैलाया जाने वाले संक्रमण है जो खासकर हमारे सांस प्रणाली के आगे वाले हिस्से को प्रभावित करता है। जुकाम शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता का परिचायक है

कब होता है सर्दी जुकाम – Common Cold Causes in Hindi

हमारे नाक और गले की भीतरी दीवार बलगम (Mucus–मयूकस) का स्राव करती है। बलगम एक चिपचिपा पदार्थ होता है जिस में धूल, पराग कण, जीवाणु और विषाणु अटक कर रह जाते हैं और फेफड़ों में नहीं जा पाते।

इस अंदरूनी दीवार की सतह पर बालों से भी छोटे और करोड़ों की संख्या में मौजूद रोये इन दूषित पदार्थों को गले के भीतर जाने से रोकते हैं और जो दूषित पदार्थ इन रोओं से बच कर अंदर पहुंच जाते है उन्हें हमारे आमाशय में मौजूद अम्ल (Acid) नष्ट कर देता है

जब हमें सर्दी होती है तो इसका मतलब है कि विषाणुओं (Virus) ने इस प्रतिरोधी कवच को भेदकर भीतरी कोशिकाओं पर आक्रमण कर दिया है। जब यह विषाणु संक्रमण (Viral Infection) होता है तो हमारी रोग प्रतिरोधक शक्ति (Immunity) भी सक्रिय (Active) हो जाती है।

ऐसी स्थिति में नाक की नसों (Veins) में अधिक मात्रा में रक्त बहने लगता है। जिसकी वजह से वह भाग लाल और गर्म प्रतीत होता है। बलगम वाली अंदरूनी परत में सूजन आ जाने से सांस लेने वाला मार्ग अवरुध्द हो जाता है और हमें नाक से सांस लेने में दिक्कत महसूस होती है।

सर्दी जुकाम में होने वाली परेशानी – Issues in Common Cold in Hindi

बलगम पैदा करने वाली कोशिकायें कई गुना अधिक मात्रा में बलगम बनाती हैं, जिनमें से कुछ हिस्सा तो पेट में चला जाता है, मगर अधिकांश नाक से बाहर बहने लगता है। इसी दौरान नाक में मौजूद तंत्रिकायें मस्तिष्क (Brian) तक संदेश पहुंचाती हैं जिसके फलस्वरूप मस्तिष्क नाक और मुंह के चारों ओर मौजूद मांसपेशियों (Muscles) का प्रसारण व संकुचन करता (Expand and Contract) हैं और हमें छींके आने लगती हैं।

जुकाम सर्दियों की बजाय गर्मियों में ज्यादा होता है, क्योंकि गर्मियों में गर्म से ठंढे व ठंढेे से गर्म माहौल में लगातार आना-जाना होता है। आजकल जुकाम (Jukam) का सबसे प्रमुख कारण एलर्जी (Alergy) है।

सर्दी जुकाम के लक्षण – Common Cold Symptoms in Hindi

  • आँख से पानी बहना
  • कान में दर्द होना
  • गले में दर्द होना
  • नाक से पानी बहना
  • सरदर्द होना
  • हरारत महसूस होना

सर्दी जुकाम के कारण – Common Cold Causes in Hindi

जुकाम आमतौर पर दो तरीके से होता है :

  • हवा में मौजूद बैक्टीरिया या वायरस जब कभी सांस के जरिए शरीर में प्रवेश करते हैं, तो एलर्जी हो जाती है। नतीजा यह होता है कि पानी या बलगम नाक से बाहर आने लगते हैं।
  • हमारे गले में दो तरह के बैक्टीरिया मौजूद होते हैं – कुछ अच्छे और कुछ बुरे। कभी-कभी सर्दी-गर्मी बढ़ने, एकदम ठंडा-गर्म खाने, ठंडे से गर्म व गर्म से ठंडे माहौल में जाने, ठंडा पानी ज्यादा पीने या बारिश में भीगने से गले के बुरे बैक्टीरिया सक्रिय हो जाते हैं। ये बैक्टीरिया ही गले में इन्फेक्शन कर देते हैं और जुकाम (Jukam) की वजह बनते हैं। 

सर्दी जुकाम का इलाज – Common Cold Treatment in Hindi

जुकाम एक स्वभाविक क्रिया मानी जाती है। अगर कुछेक दिन में यह अपने आप ठीक हो जाए तो इसे बीमारी नहीं माना जाता लेकिन अधिक दिन रहने पर इसका उपचार कराना जरूरी होता है। जुकाम के कुछ खास उपाय निम्न हैं: 

  • साधारण जुकाम अपने आप पांच दिन में ठीक हो जाता है।
  • अगर बलगम सफेद हो तो यह एलर्जी की निशानी है। यह साधारण जुकाम होता है।
  • जुकाम को पांच दिन से ज्यादा हो जाएं या साथ में खांसी, बलगम, बदन दर्द व बुखार भी हो, तो समझना चाहिए कि आम जुकाम नहीं है।
  • अगर बलगम पीला हो हो व सांस की दिक्कत के साथ बुखार भी हो तो बैक्टीरियल इंफेक्शन होता है।
  • ऐसे में डॉक्टर के पास जाना चाहिए।
  • अगर कफ़ के साथ खून भी आए तो चिंताजनक बात है। यह टी.बी. का लक्षण हो सकता है। ऐसे में तुरन्त डॉक्टर से परामर्श लें।  

रेबीज – Rabies in Hindi

रेबीज़ एक न्यूरो इनवेसिव (Neuro-Invasive) वायरल बीमारी है। रेबीज़ का वायरस तंत्रिका तंत्र यानि सेंट्रल नर्वस सिस्टम (Central Nervous System) पर अटैक करता है, जिससे पीड़ित व्यक्ति सामान्य नहीं रह पाता।

क्यों होता है रेबीज़ – Causes of Rabies in Hindi

रेबीज़ (Rabies​) कुत्तों या अन्य पशुओं जैसे भेड़िया, लोमड़ी, सियार, गीदड़ चमगादड़, भेड़, गाय, बन्दर, घोड़ा, बिल्ली के काटने से होने वाला रोग है । पालतू जानवर के थूक के संपर्क में आने पर भी रेबीज़ रोग हो सकता है।

रेबीज़ से होने वाली मौतें – Death Due to Rabies​ in Hindi

विश्व स्वास्थ्य संगठन की तालिका में रेबीज़ (Rabies​) से होने वाली मौतें बारहवें क्रम पर हैं। विश्व में जानवरों के काटने के चालीस लाख मामले प्रतिवर्ष होते हैं। इलाज की अज्ञानता अथवा उपचार के अभाव में साठ हजार मौतें विश्व में प्रतिवर्ष होती हैं। सर्वाधिक मौतें एशिया में होती हैं। पशुओं के काटने के पाँच लाख मामले प्रतिवर्ष दर्ज कराए जाते हैं, जिनमें चार लाख पच्चीस हजार मामले कुत्तों के काटने के होते है। 

रेबीज के लक्षण – Rabies Symptoms in Hindi

  • गले की मांस पेशियों में खिंचाव पैदा हो जाता है
  • पीड़ित व्यक्ति कुत्ते की तरह भौंकने भी लगता है
  • बेचैनी, आंशिक पक्षाघात, भ्रम, अनिद्रा और निगलने में कठिनाई आदि कुछ अन्य लक्षण हैं
  • रेबीज का शिकार बने जानवरों का दिमागी संतुलन बिगड़ने लगता है
  • रेबीज हो जाने पर मरीज पानी से डरने लगता है

रेबीज के कारण – Rabies Causes in Hindi

रेबीज पशुओं के काटने के कारण होता है। पालतू जानवर, कुत्ते, बिल्ली या चमकादड़ के काटने से सबसे अधिक रेबीज़ होता है। 

रेबीज का इलाज – Rabies Treatment in Hindi

रेबीज से बचाव के लिए जरूरी है इसके बारें में जानकारी होना। रेबीज़ (Rabies) अकसर पशुओं के काटने के कारण होता है, साथ ही ऐसे में इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि यह सिर्फ काटने ही नहीं छिलने के कारण भी होता है। रेबीज़ होने पर निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए: 

  • पशुओं के काटने पर काटे गए स्थान को पानी व साबुन से अच्छी तरह धो देना चाहिए।
  • धोने के बाद काटे गए स्थान पर अच्छी तरह से टिंचर या पोवोडीन आयोडिन लगाना चाहिए। ऐसा करने से कुत्ते या अन्य पशुओं की लार में पाए जाने वाले कीटाणु सिरोटाइपवन लायसा वायरस की ग्यालकोप्रोटिन की परतें घुल जाती हैं। इससे रोग की मार एक बड़े हद तक कम हो जाती है, जो रोगी के बचाव में सहायक होती है।
  • इसके तुरंत बाद रोगी को टिटेनस का इंजेक्शन लगवाकर चिकित्सालय में ले जाना चाहिए। यहाँ चिकित्सक की सलाह से काटे गए स्थान पर कार्बोलिक एसिड लगाया जाता है, जिससे अधिकतम कीटाणु नष्ट हो जाते हैं।
  • इसके बाद चिकित्सक की सलाह पर आवश्यकतानुसार इंजेक्शन लगाए जाते हैं, जो तीन या दस दिन की अवधि के होते हैं।
  • तत्पश्चात आवश्यकतानुसार निश्चित दिनों पर बुस्टर डोज भी दिए जाने का प्रावधान है, जो चिकित्सक के विवेक व काटे गए पशु की जीवित या मृत होने की अवस्था पर निर्भर करते हैं।
  • इंजेक्शन लगाने की क्रमबद्धता में लापरवाही घातक सिद्ध हो सकती है।
  • इस रोग का प्रकोप पशु के काटने के तीन दिन के बाद व तीन वर्ष के भीतर कभी भी हो सकता है। 

पित्त (पित्ताशय) की पथरी – Gallbladder Stones (Gallstones) in Hindi

पित्त (पित्ताशय) की पथरी के बारे में – About Gallbladder Stone in Hindi

पित्ताशय (Gall Bladder) पित्त (Bile) भंडारण के लिए एक छोटी सी थैली है (पित्त जिगर द्वारा उत्पादित एक पाचक रस है जो खाने में मौजूद वसा के टूटने में प्रयोग किया जाता है)। पित्ताशय में वसायुक्त खाद्य पदार्थों की मात्र अधिक होने से पित्ताशय की पथरी (कोलेस्ट्रॉल, पित्त वर्णक और कैल्शियम लवण से बना छोटा सा पत्थर) का निर्माण होता है।

गॉलस्टोन्स या पथरी पाचन तंत्र की एक आम बीमारी है, और अधिकतर 50 साल से अधिक आयु वर्ग के लोग इससे प्रभावित होते थे, परन्तु वर्तमान जीवन शैली के कारण, खास तौर पर खान पान की आदतों के कारण, युवा वर्ग भी इस तकलीफ से पीड़ित होने लगा है। पित्ताशय की पथरी (pathari ) पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अधिक होती हैं।

पित्त (पित्ताशय) की पथरी के प्रकार – Types of Gallstones in Hindi

  • मिश्रित पत्थर – कोलेस्ट्रॉल और नमक से बने पत्थर
  • कोलेस्ट्रॉल पत्थर – मुख्य रूप से कोलेस्ट्रॉल ,एक वसा की तरह के पदार्थ का बना हुआ होता है।
  • र्णक पत्थर – पित्त रंग में हरे भूरे रंग का है , विशेष पिगमेंट के कारण वसा की तरह के पदार्थ का बना हुआ होता है
  • पित्त में कोलेस्ट्रॉल संचय, पित्ताशय की पथरी का मुख्य कारण है। 

पित्त (पित्ताशय) की पथरी के लक्षण – Gallbladder Stones Symptoms in Hindi

  • दर्द छाती, कंधे, गर्दन में भी फैल सकता है
  • पेट और पीठ में अचानक दर्द उठना
  • वसायुक्त भोजन खाने के बाद पेट के दर्द में तेजी आना, पीलिया, बुखार

पित्त (पित्ताशय) की पथरी के कारण – Causes of Gallstones in Hindi

  • पित्त में कोलेस्ट्रॉल की अत्यधिकता (Over Saturation)
  • पित्त में लेसिथिन
  • और पित्त लवण की कम आपूर्ति (Undersupply)।  

पित्त (पित्ताशय) की पथरी का इलाज – Gallbladder Stones Treatment in Hindi

पित्ताशय की पथरी किसी भी समस्याओं का कारण नहीं है लेकिन यदि पित्ताशय की पथरी संक्रमण पैदा कर रहा है तो आपरेशन जरूरी है।   

डिस्लेक्सिया (वाकविकार) – Dyslexia (Vakvikar) in Hindi

डिस्लेक्सिया (वाकविकार) के बारे में – About Dyslexia (Vakvikar) in Hindi

डिस्लेक्सिया कोई बीमारी नहीं है और न ही यह कोई मानसिक अयोग्यता है। डिस्लेक्सिया (Dyslexia) पढ़ने-लिखने से संबंधी एक विकार है, जिसमें बच्चों को शब्दों को पहचानने, पढ़ने, याद करने और बोलने में परेशानी आती है। वे कुछ अक्षरों और शब्दों को उल्टा पढ़ते हैं और कुछ अक्षरों का उच्चारण भी नहीं कर पाते। उनकी पढ़ने की रफ्तार और बच्चों की अपेक्षा काफी कम होती है।

यह विकार ३-१५ साल के सामान्य जनसंख्या के लगभग ३% बच्चों में पाया जाता है। कई माता-पिता डिस्लेक्सिया को मानसिक रोग से जोड़ते हैं, जबकि ऐसा नहीं है। डिस्लेक्सिया को कंट्रोल किया जा सकता है। इसके लिए बच्चों पर ध्यान देने की जरूरत है।

डिस्लेक्सिया (वाकविकार) के लक्षण – Dyslexia (Vakvikar) Symptoms in Hindi

अगर आपका बच्चा इनमें से एक या दो परेशानियों से गुजर रहा है और वो स्थायी समस्या नहीं हों तो थोड़ी मदद से ही बच्चे को राहत मिल सकती है, चाहे वो घर पर की गई मदद हो या कक्षा में

  • उच्चारण साफ नहीं होना
  • उत्तेजित रहना
  • कविता वाले शब्दों में दिक्कत
  • काफी थका होना या एकाग्रता (एक चीज़ पर ध्यान लगाने) में कमी
  • गिनती, शब्द, दिन और महीनों के नाम समझने में दिक्कत
  • दाएं और बांए में अंतर समझने में दिक्कत होना
  • दिशा और निर्देश समझने में परेशानी
  • दूसरे बच्चों के मुकाबले देर से बोलना शुरु करना
  • नंबरों के क्रम और गणित के चिन्हों में उलझन
  • नई चीजें सीखने में देरी
  • पढ़ाई के दौरान शब्दों की गलतियां लगातार करना
  • प्राइमरी पढ़ाई के दौरान लक्षण पढ़ने
  • बातचीत करने में दिक्कत
  • बिना सोच विचार के कार्य करना या किसी कार्य को करने योजना नहीं बनाना
  • यदि घर पर आप अपने बच्चे के व्यवहार के बारे में सतर्क हैं तो शिक्षकों से जानकारी लीजिए कि क्या स्कूल में भी वो ऐसा ही व्यवहार करता है.
  • लोगों से बोलचाल करने में दिक्कत, अपने आसपास की चीजों के प्रति असंवेदनशीलता जिसके कारण दुर्घटना की संभावना बनी रहती है
  • वर्णमाला और संख्या को सीखने में दिक्कत होना
  • शब्दों और ध्वनि के मेल को काफी देर से समझना
  • शब्दों का मतलब समझने में देरी, ज्यादातर सही शब्दों को नहीं पकड़ पाना
  • शब्दों की पहचान में दिक्कत जैसे (b/d), उल्टे (m/w), मिलते जुलते (felt/left) और वैकल्पिक (house/home) शब्द
  • समय के बारे में याद रखने की कमी
  • स्कूल से पहले के लक्षण

डिस्लेक्सिया (वाकविकार) के कारण – Dyslexia (Vakvikar) Causes in Hindi

  • वंशानुगत (Herediatary), यह तंत्रिका तंत्र (Nervous System) की समस्या है, जो जन्म पूर्व कारकों पर निर्भर करती हैं। 
  • माता के संतुलित आहार की कमी, धूम्रपान का सेवन भी इसके कारण हो सकते हैं।
  • बच्चों में कुपोषण भी इसका एक बड़ा कारण है।

डिस्लेक्सिया (वाकविकार) का इलाज – Dyslexia (Vakvikar) Treatment in Hindi

  • कुछ केस में बच्चे के जन्म से पहले ही डिस्लेक्सिया का अंदाजा लगाया जा सकता है। ऐसे में डॉक्टर उन गर्भवती महिलाओं को पौष्टिक आहार लेने की सलाह के साथ साथ कुछ विशेष दवाओं से संबंधित सलाह देते हैं।
  • जिन मामलों में जन्म के बाद डिस्लेक्सिया का पता लगता है, उन बच्चों को ज्यादा समय देकर संभाला जा सकता है। इन बच्चों की समझ धीमी होती है, इसलिए इन्हें ज्यादा समय देने की आवश्यकता होती है।
  • डिस्लेक्सिया से पीड़ित बच्चों के साथ अपना पढ़ने का अपना तरीका बदलें, चीजों को आसान करके बताएं, तोड़-तोड़कर समझाएं। चित्रों और कहानियों का सहारा लें। जिन अक्षरों को पहचानने और लिखने में समस्या होती है, उन्हें बार-बार लिखवाए।
  • वोकेशनल ट्रेनिंग कराएं।